नई दिल्लीः आज, 26 जनवरी को भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। इसी दिन 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ था, और तब से अब तक इसमें कई संशोधन किए जा चुके हैं। यह संविधान 75 वर्षों से देश के मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण दस्तावेज रहा है, जो समय-समय पर देश की बदलती जरूरतों के अनुसार अद्यतन होता रहा है। भारतीय संविधान को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलावों के अनुरूप संशोधित किया गया है ताकि यह प्रासंगिक बना रहे।
संविधान में अब तक 105 संशोधन किए जा चुके हैं
अब तक (2025 तक), भारतीय संविधान में 105 संशोधन किए जा चुके हैं, जिनका उद्देश्य विभिन्न पहलुओं को सुधारना रहा है। ये संशोधन संविधान के मौलिक अधिकार, संघीय ढांचा, आरक्षण नीति, चुनाव प्रक्रिया, और न्यायपालिका की भूमिका से संबंधित रहे हैं। इनमें से कई संशोधन समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव डालने वाले रहे हैं।
भारत में किए गए महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन
- पहला संशोधन (1951): इस संशोधन में भूमि सुधार कानूनों को नौवीं अनुसूची में डाला गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए थे।
- सातवां संशोधन (1956): इस संशोधन ने राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर किया और संघीय ढांचे को मजबूत किया।
- दसवां संशोधन (1961): इस संशोधन के तहत दादरा और नगर हवेली को भारत का हिस्सा बनाया गया।
- चौदहवां संशोधन (1962): पुदुचेरी को भारत के केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया।
- पच्चीसवां संशोधन (1971): संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा कर कानूनी अधिकार बना दिया गया।
- छब्बीसवां संशोधन (1971): राजाओं के प्रिवी पर्स (Privy Purse) को समाप्त कर दिया गया।
- बयालीसवां संशोधन (1976): इस संशोधन में “समाजवादी”, “धर्मनिरपेक्ष” शब्द जोड़े गए और मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा पेश की गई।
- चौवालिसवां संशोधन (1978): आपातकालीन शक्तियों को सीमित किया और संपत्ति के अधिकार को कानूनी अधिकार बना दिया।
- पचासवां संशोधन (1984): इस संशोधन ने अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान किए।
- बावनवां संशोधन (1985): दल-बदल विरोधी कानून लागू किया गया, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधि अपनी पार्टी नहीं बदल सकते थे।
- तिरपनवां संशोधन (1986): मिजोरम राज्य का गठन किया गया।
- चौंसठवां संशोधन (1990): जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए यह संशोधन हुआ।
- तिहत्तरवां एवं चौहत्तरवां संशोधन (1992-93): पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया।
- छियासीवां संशोधन (2002): शिक्षा का अधिकार अधिनियम लाया गया, जिसके तहत 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य हो गई।
- अठानवेवां संशोधन (2012): सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा मिला।
- निन्यानवेवां संशोधन (2014): राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम लाया गया, लेकिन बाद में इसे असंवैधानिक घोषित किया गया।
- एक सौ एकवां संशोधन (2016): वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू किया गया, जिससे अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में बदलाव आया।
- एक सौ तीसरा संशोधन (2019): आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण प्रदान किया गया।
- एक सौ पांचवा संशोधन (2021): राज्यों को अन्य पिछड़ा वर्गों की सूची तैयार करने का अधिकार फिर से दिया गया।
संविधान में बदलाव क्यों आवश्यक हैं?
संविधान में बदलाव इसलिए जरूरी हैं क्योंकि समाज और उसकी जरूरतें लगातार बदलती रहती हैं। नई समस्याओं और स्थितियों का समाधान करने के लिए कानूनों में संशोधन किए जाते हैं। इन संशोधनों के माध्यम से भारतीय संविधान ने खुद को लचीला और समावेशी बनाए रखा है, ताकि यह देश की बदलती परिस्थितियों और चुनौतियों से निपट सके।
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