अंबेडकर जयंती

संविधान निर्माता और भारतरत्न डॉ भीमराव अंबेडकर की आज पूरा देश 135वीं जयंती मना रहा है। बाबा साहेब की जयंती मनाने में राजनीतिक पार्टियां भी पीछे नहीं हैं। बिहार के राजनीतिक दलों में अंबेडकर जयंती बेहतर से बेहतर तरीके से मनाने और दलितों के रहनुमा बताने को लेकर एक तरह की होड़ मची हुई है। ऐसा इसलिए भी है कि बिहार में इस साल के अंत तक चुनाव भी होने हैं, लिहाजा बिहार के चुनावी साल में सभी राजनीतिक दल अंबेडकर जयंती के जरिए दलितों को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।

बिहार चुनाव और दलित राजनीति
बिहार में चुनावी साल है। लिहाजा सियासी पार्टियों में अपने अपने वोट बैंक को चाक-चौबंद करने की कवायद तेज़ होती दिख रही है। बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती के मौक़े को भुनाने और बिहार के दलित वोटरों को साधने की होड़ कमोबेश सभी दलों में देखी जा सकती है। ऐसे में सवाल मौजूं हो चला है कि आखरिकार बिहार में दलितों का सरताज कौन? एलजेपी से जुड़े नेता और बिहार की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले डॉ. शशिभूषण प्रसाद ने बिहार जोहार न्यूज के साथ बाबा साहेब जयंती पर अपने विचारों को साझा किया।

बिहार में दलितों का वोट काफी अहम
डॉ. शशिभूषण प्रसाद ने कहा कि पहले बिहार में दलितों की ताक़त को समझ लेना जरुरी है। ये जान लेने की दरकार है कि क्यों इस बार चुनाव में हर दल की पसंद दलित वोटर बने हुए हैं। दरअसल सूबे में दलितों की आबादी करीब 19 फीसदी है। दलितों के लिए 38 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। लेकिन कई ऐसी सीटें और भी हैं जहां दलित किसी भी पार्टी को जिताने या हराने का माद्दा रखते हैं। जाहिर तौर पर बिहार के दलित मतदाता यहां सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखे हुए हैं और इसी वजह से उन्हें लुभाने में हर राजनीतिक दल लगा हुआ है। और तो और सूबे की सत्ताधारी पार्टी जनतादल यूनाइटेड को भीम संवाद का आयोजन करना पड़ रहा है।

दलितों को पक्ष में करने की होड़
डॉ. शशिभूषण प्रसाद ने कहा कि प्रदेश के दलित वोटबैंक पर लंबे वक्त तक कांग्रेस की मजबूत पकड़ हुआ करती थी। लेकिन 90 के दशक में अगड़े बनाम पिछड़ों की जंग में दलित वोटर लालू की आरजेडी साथ खड़ा हो गया। डॉ. शशिभूषण प्रसाद ने आगे बताया कि अब कांग्रेस इसे वापस पाने के लिए हर तरह के कार्ड खेल रही है। इसी के तहत सूबे में पार्टी की कमान एक दलित नेता राजेश राम को सौंपी गई है। तो वहीं पहली बार चुनावी जंग में उतर रही जनसुराज भी दलितों को साधने में लगी है। चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी का पहला कार्यवाहक अध्यक्ष एक दलित मनोज भारती को बनाया है। इस वादे के साथ कि जनसुराज सत्ता में आई तो दलितो की दुश्वारियां दूर हो जाएंगी। पार्टी ने इसके लिए पांच वायदे भी किए हैं।

दलितों में चिराग पासवान का क्रेज
डॉ. शशिभूषण प्रसाद ने कहा कि दलित वोटबैंक के एक बड़े हिस्से पर लोक जनशक्ति पार्टी का कब्जा रहा है। सूबे के 6 फीसदी पासवान वोटर दशकों से रामविलास पासवान के साथ रहे हैं। और आज उनके बीच चिराग पासवान का क्रेज वैसा ही बना हुआ है। चिराग की एक झलक पाने को वो बेचैन नजर आते हैं। खुद चिराग पासवान इसे अपने पिता की कमाई और उन्ही की विरासत मानते हैं।  सच तो ये है कि एनडीए में चिराग पासवान की अहमियत और उनकी हैसियत इसी वोटबैंक के दम पर है। लोजपा की कोशिश पासवान वोटरों के अलावा दूसरी दलित जातियों को भी लोजपा से जोड़ने की है। क्योंकि रामविलास पासवान के बाद चिराग पासवान बिहार में दलितों के सर्वमान्य नेता के तौर पर उभर चुके हैं। जबतक रामविलास पासवान रहे, यहां लाख कोशिश के बावजूद मायावती की बहुजन समाज पार्टी की दाल नहीं गली और अब चिराग पासवान के सामने चंद्रशेखर आजाद जैसे दलित नेताओं की कोई चाल काम नहीं आ रही।

सबसे भरोसेमंद चेहरा चिराग पासवान: शशिभूषण
डॉ. शशिभूषण प्रसाद ने आगे कहा कि आपको याद होगा पिछले चुनाव में चिराग पासवान के कारण नीतीश कुमार से दलित वोटर छिटक गया था, जिसके चलते उनकी सीटों की संख्या घटकर 43 हो गई थीं. वहीं लोकसभा चुनाव में दलितों ने बीजेपी का बायकॉट कर दिया था। संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ तैयार किए गए नैरेटिव से दलित वोटर बीजेपी से दूर हो गया था और पार्टी को इसका बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ा। बीजेपी अब विपक्ष के उस चक्रव्यूह को तोड़ने की कोशिश में है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में उसके खिलाफ तैयार किया गया था। इसके लिए बीजेपी और जेडीयू ने लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर जिस ‘ऑपरेशन-D’ पर काम शुरू कर दिया है। डॉ. शशिभूषण प्रसाद बताते हैं कि ‘ऑपरेशन-डी’ का सबसे भरोसेमंद चेहरा चिराग पासवान ही हैं।

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