पटना डेस्क: हमारी आकाशगंगा, मिल्की वे के केंद्र में मौजूद विशाल ब्लैक होल अक्सर चर्चा में रहता है। हाल ही में इसे देखकर ऐसा लग रहा है मानो वहां कोई अद्भुत गतिविधि हो रही हो। हालांकि, यह दृश्य डरावना भी है, लेकिन विज्ञान के नजरिए से बेहद रोमांचक है।
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफिजिसिस्ट्स की टीम ने नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) का उपयोग करते हुए, इस सुपरमैसिव ब्लैक होल की अब तक की सबसे विस्तृत छवि प्राप्त की है। इस अध्ययन में पहले से कहीं अधिक गहराई से जानकारी सामने आई है।
ब्लैक होल में अनोखी घटनाएं देखी गईं
मिल्की वे के इस केंद्रीय सुपरमैसिव ब्लैक होल को सैगिटेरियस A* के नाम से जाना जाता है। इसके चारों ओर गैस और धूल का घना बादल मौजूद है, जो हाल ही में लगातार चमकते हुए फ्लेयर छोड़ रहा है। कुछ फ्लेयर सिर्फ कुछ सेकंड तक रहते हैं, जबकि कुछ की चमक विस्फोट जैसी होती है। वहीं, कुछ फ्लेयर महीनों तक बढ़ते रहते हैं।
इन गतिविधियों में सबसे खास बात यह है कि इनका कोई निश्चित पैटर्न नहीं है। कभी ये बहुत कम अंतराल में होती हैं, तो कभी लंबे समय तक चलती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इन घटनाओं का अध्ययन करने से ब्लैक होल के स्वभाव, उसके आसपास के माहौल और मिल्की वे के विकास को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।
ब्लैक होल पर 48 घंटे की गहन रिसर्च
यह अध्ययन 18 फरवरी 2025 को द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित किया गया। इस रिसर्च को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यूसुफ-ज़ादेह और उनकी टीम ने JWST के नियर-इन्फ्रारेड कैमरा (NIRCam) का इस्तेमाल किया।
यह टेलीस्कोप दो अलग-अलग इंफ्रारेड तरंगों को लंबे समय तक कैप्चर कर सकता है। वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल की गतिविधियों का कुल 48 घंटे तक अध्ययन किया। यह रिसर्च एक साल में 8-10 घंटे के हिस्सों में पूरी की गई।
ब्लैक होल की हलचल का कोई तयशुदा पैटर्न नहीं
शोधकर्ताओं को उम्मीद थी कि वे कुछ फ्लेयर देखेंगे, लेकिन सैगिटेरियस A* की गतिविधि उनकी अपेक्षाओं से काफी अधिक निकली।
ऑब्ज़रवेशन के दौरान, ब्लैक होल के चारों ओर मौजूद गैस और धूल के बादल हर दिन 5-6 बड़े फ्लेयर उत्पन्न कर रहे थे, और कभी-कभी छोटे फ्लेयर भी बन रहे थे। लेकिन इनका कोई स्पष्ट पैटर्न नहीं देखा गया।
ब्लैक होल में दो तरह की प्रक्रियाएं हो रही हैं
एस्ट्रोफिजिसिस्ट्स अभी भी इन अजीब घटनाओं को पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं। यूसुफ-ज़ादेह का मानना है कि ब्लैक होल में दो अलग-अलग प्रक्रियाएं काम कर रही हैं, जिससे छोटे और बड़े फ्लेयर बन रहे हैं।उन्होंने बताया कि ब्लैक होल के आसपास घूमने वाली गैस और धूल की डिस्क को अगर एक नदी माना जाए, तो छोटे फ्लेयर नदी में बनने वाली हल्की लहरों की तरह हैं, जिनका कोई निश्चित पैटर्न नहीं होता। वहीं, लंबे समय तक चलने वाले फ्लेयर बड़ी समुद्री लहरों जैसे होते हैं, जो किसी विशाल ऊर्जा विस्फोट के कारण बनते हैं।
प्लाज्मा और मैग्नेटिक फील्ड का रहस्य
यूसुफ-ज़ादेह ने समझाया कि ब्लैक होल की डिस्क में हलचल होने से, वहां मौजूद गर्म और चार्ज्ड गैस (प्लाज्मा) पर दबाव पड़ता है, जिससे अचानक रेडिएशन का विस्फोट होता है। यह प्रक्रिया सोलर फ्लेयर की तरह होती है।उन्होंने यह भी बताया कि जिस तरह सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड में बदलाव होने से सौर ज्वालाएं (Solar Flares) फूटती हैं, वैसे ही ब्लैक होल के आसपास भी शक्तिशाली ऊर्जा विस्फोट होते हैं। हालांकि, सूर्य की तुलना में ब्लैक होल का एनवायरनमेंट ज्यादा खतरनाक और उग्र होता है।
छोटी और लंबी वेवलेंथ्स में दिलचस्प अंतर
JWST के NIRCam टूल ने 2.1 और 4.8 माइक्रोन की दो वेवलेंथ्स पर ब्लैक होल का अध्ययन किया। इससे शोधकर्ताओं को फ्लेयर की चमक और उनके समय में हुए बदलावों की तुलना करने का मौका मिला।इस अध्ययन में एक चौंकाने वाली बात सामने आई। वैज्ञानिकों ने पाया कि छोटी वेवलेंथ की रोशनी पहले बदलती है, जबकि लंबी वेवलेंथ की रोशनी बाद में बदलती है।
यूसुफ-ज़ादेह ने कहा, “पहली बार हमने देखा कि वेवलेंथ्स में समय का अंतर (Time Delay) मौजूद है।” उन्होंने पाया कि लंबी वेवलेंथ की रोशनी लगभग 40 सेकंड की देरी से पहुंचती है।
ब्लैक होल के रहस्यों को समझने की नई योजना
यूसुफ-ज़ादेह और उनकी टीम ब्लैक होल की गतिविधियों को और गहराई से समझने के लिए JWST टेलीस्कोप का लंबे समय तक उपयोग करने की योजना बना रही है। उन्होंने इसके लिए 24 घंटे तक लगातार ब्लैक होल को देखने का प्रस्ताव भेजा है।उनका मानना है कि अगर ब्लैक होल को लंबे समय तक देखा जाए, तो डेटा में मौजूद शोर (Noise) कम होगा और वैज्ञानिक छोटी-छोटी डिटेल्स को स्पष्ट रूप से देख पाएंगे।
अब देखना होगा कि आने वाली रिसर्च रिपोर्ट्स में हमें और कौन-कौन से अद्भुत रहस्य पता चलते हैं, और मिल्की वे के इस रहस्यमयी ब्लैक होल से जुड़े नए खुलासे कब सामने आते हैं।