पटना डेस्क: जब पूरा देश होली के रंगों में डूबने की तैयारी करता है, तब बिहार के एक गांव के लोग इस त्योहार से दूरी बनाए रखते हैं। मुंगेर जिले के इस गांव में सैकड़ों वर्षों से होली नहीं मनाई जाती। न यहां रंग खेला जाता है, न ही विशेष पकवान बनाए जाते हैं। मान्यता है कि जिसने भी इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की, उसे गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा। पिछले 400 वर्षों से यहां के लोग होली से पूरी तरह परहेज कर रहे हैं।

होली मनाना क्यों है अभिशाप?

मुंगेर जिले के असरगंज प्रखंड में स्थित साजुआ और सती स्थान गांव के लोग होली को एक अभिशाप मानते हैं। इस गांव में लगभग 150 घर हैं और यहां करीब 700 लोग रहते हैं, लेकिन कोई भी होली नहीं मनाता। न तो रंग खेलते हैं, न गुलाल लगाते हैं और न ही त्योहार पर पकवान बनाते हैं।

ग्रामीणों का मानना: होली से आती है आपदा

गांव के निवासी महेश सिंह के अनुसार, यह मान्यता वर्षों से चली आ रही है कि अगर यहां किसी ने होली मनाने की कोशिश की तो उसके परिवार पर मुसीबत आ सकती है। यहां तक कि फागुन महीने में पुआ या कोई अन्य पकवान बनाने का प्रयास भी अनहोनी को न्योता दे सकता है। यही कारण है कि यह गांव ‘सती स्थान’ के नाम से भी जाना जाता है।

“हमारे गांव में कोई भी होली मनाने का प्रयास नहीं करता। सभी जाति और धर्म के लोग इस परंपरा को मानते हैं। होली के दिन भी साधारण भोजन बनाया जाता है। अगर कोई गांव से बाहर भी जाता है, तो लोग जानकर कि वह सती स्थान गांव से है, उसे रंग नहीं लगाते।” – महेश सिंह, ग्रामीण

400 साल पुरानी मान्यता: सती प्रथा से जुड़ी कहानी

गांव के बुजुर्ग गोपाल सिंह बताते हैं कि करीब 400 साल पहले इस गांव में एक महिला ‘सती’ के पति की मौत होलिका दहन के दिन हुई थी। वह अपने पति के साथ सती होने की जिद पर अड़ गई, लेकिन ग्रामीणों ने उसे रोक दिया। इसके बावजूद वह अपनी जिद पर कायम रही।

सती और उसके पति की एक साथ चिता जलने की कथा

ग्रामीणों ने सती को एक कमरे में बंद कर दिया और उसके पति के शव को श्मशान ले जाने लगे। लेकिन हर बार शव अर्थी से गिर जाता था। जब दरवाजा खोला गया तो सती दौड़कर अपने पति के पास पहुंची और उसके साथ चिता पर बैठ गई।

“गांव में ही सती के लिए चिता बनाई गई थी। कहते हैं कि सती की सबसे छोटी उंगली से अचानक आग निकली और उसी आग में पति-पत्नी साथ जल गए।” – गोपाल सिंह, ग्रामीण

गांव को मिला ‘सती स्थान’ नाम, आज भी कायम है परंपरा

इस घटना के बाद गांव के लोगों ने सती माता का मंदिर बनवाया और इस स्थान को ‘सती स्थान’ कहा जाने लगा। तब से गांव में होली मनाना बंद कर दिया गया।

“हम लोग होली नहीं मनाते हैं। यह परंपरा हमारे पूर्वजों से चली आ रही है। यदि कोई फागुन महीने में पुआ-पकवान बनाने की कोशिश करता है, तो उसके घर में आग लग जाती है। ऐसी घटनाएं कई बार हो चुकी हैं।” – बिंदेशरी सिंह, सती के वंशज

गांव के लोग फागुन बीतने के बाद 14 अप्रैल को होलिका दहन का आयोजन करते हैं, लेकिन रंगों का त्योहार अब भी यहां पूरी तरह वर्जित है।

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