धनबाद: अब ट्रेनों की बोगियों की सफाई ऑटोमेटिक तरीके से की जा रही है। कोचिंग डिपो में 2.25 करोड़ रुपये की लागत से ऑटोमेटिक कोच वॉशिंग प्लांट स्थापित किया गया है, जिससे सफाई में लगने वाला समय और पानी दोनों की बचत हो रही है। साथ ही, धुलाई की लागत भी कम हो रही है।
कैसे काम करता है यह प्लांट?
कोचिंग डिपो के अधिकारी अभय मेहता के मुताबिक, 12 फरवरी से इस वाशिंग प्लांट का उपयोग किया जा रहा है। पहले, 22 कोच वाले एक रैक को मैन्युअल तरीके से साफ करने में बहुत अधिक पानी और समय लगता था, लेकिन अब यह काम काफी तेज़ी से हो रहा है।
15 मिनट में पूरी होती है सफाई
पहले मैन्युअल वाशिंग में 3.5 घंटे लगते थे, लेकिन ऑटोमेटिक वाशिंग प्लांट से सिर्फ 15 मिनट में पूरी ट्रेन की सफाई हो जाती है। पहले एक कोच की धुलाई में 150 लीटर पानी खर्च होता था, जबकि अब सिर्फ 300 लीटर पानी में पूरी 22 कोच वाली ट्रेन धुल जाती है।
80% पानी होता है रिसाइकल
इस प्लांट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें 80% पानी को रिसाइकल कर दोबारा उपयोग किया जाता है। सिर्फ 20% पानी ही बर्बाद होता है। इस तकनीक की मदद से हर साल 1.28 करोड़ लीटर पानी की बचत होगी।
कम स्टाफ में हो रहा है ज्यादा काम
मैन्युअल वाशिंग में 4-5 लोग मिलकर एक रैक की सफाई करते थे, लेकिन अब सिर्फ 1-2 कर्मचारी से यह काम पूरा हो रहा है। यह पूरी तरह से सेंसर-बेस्ड ऑटोमेटिक सिस्टम है, जो इंजन को पहचानकर सिर्फ बोगियों की सफाई करता है।
रेल मंडल का पहला ऑटोमेटिक कोच वॉशिंग प्लांट
धनबाद रेल मंडल में पहली बार इस तरह का ऑटोमेटिक वॉशिंग प्लांट लगाया गया है। इसे एक महीने में इंस्टॉल किया गया। इस प्लांट में ट्रैक के दोनों तरफ स्प्रिंकलर लगे हैं, जो हाई-प्रेशर और लो-प्रेशर में RO वॉटर, वैगन क्लीनर केमिकल के साथ पानी का छिड़काव करते हैं।
ब्रश और ड्रायर की मदद से होती है सफाई
ट्रैक के दोनों ओर 4-4 यानी कुल 8 बड़े ब्रश लगे हैं, जो कोच की सफाई करते हैं। धुलाई के बाद कोच को तेजी से सुखाने की भी व्यवस्था की गई है, जिससे ट्रेन को जल्द से जल्द ऑपरेशन के लिए तैयार किया जा सके।ऑटोमेटिक कोच वॉशिंग प्लांट से न सिर्फ समय और पानी की बचत हो रही है, बल्कि भारतीय रेलवे की स्वच्छता व्यवस्था भी अब पहले से ज्यादा आधुनिक हो गई है।