नई दिल्ली: भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की सुप्रीम कोर्ट से औपचारिक विदाई हो गई है। आज उनका कामकाजी आखिरी दिन था। वह 10 नवंबर को अपने पद से रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद जस्टिस संजीव खन्ना 11 नवंबर से चीफ जस्टिस के रूप में कार्यभार संभालेंगे। रिटायरमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और अन्य जज अदालतों में वकालत नहीं कर सकते। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(7) के अनुसार, यह प्रतिबंध इसलिए लागू किया गया है ताकि जज निष्पक्ष बने रहें और जनता का विश्वास न्यायपालिका में बना रहे।
इस नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जजों के निर्णयों पर कभी भी यह संदेह न हो कि उन्होंने अपने भविष्य के लाभ के लिए पक्षपाती निर्णय लिया हो। इसके साथ ही न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए यह प्रावधान किया गया है, ताकि यह विश्वास बना रहे कि जज केवल सच्चाई और न्याय के पक्ष में निर्णय लेते हैं।
रिटायरमेंट के बाद CJI चंद्रचूड़ क्या कर सकते हैं
रिटायरमेंट के बाद CJI और सुप्रीम कोर्ट के जज अपने अनुभव और ज्ञान का इस्तेमाल समाज के अन्य क्षेत्रों में कर सकते हैं। वे मध्यस्थता और सुलह के मामलों में अपनी सेवाएं प्रदान कर सकते हैं, जिससे कानूनी विवादों को सुलझाने में उनके अनुभव का लाभ मिलता है। इसके अलावा, उन्हें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) जैसे प्रमुख आयोगों में नियुक्त किया जा सकता है, जहां वे अपनी विशेषज्ञता का योगदान दे सकते हैं। रिटायर्ड जज कानून के छात्रों को पढ़ाने, व्याख्यान देने और कानूनी लेखन भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ रिटायर्ड जजों को राज्यपाल या अन्य सरकारी समितियों में सलाहकार के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
पूर्व CJI रंजन गोगोई की राज्यसभा नियुक्ति पर विवाद
हालांकि, रिटायरमेंट के बाद कुछ जजों को संसद में भी भेजा जाता है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं। उदाहरण के तौर पर, पूर्व CJI रंजन गोगोई को रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा में सीट दी गई थी, जिसके कारण न्यायपालिका की निष्पक्षता पर बहस हुई थी। इसके अलावा, कई रिटायर्ड जज मध्यस्थता और अन्य आयोगों में सक्रिय रहते हैं। ऐसी नियुक्तियों पर समय-समय पर यह चर्चा होती रहती है कि क्या रिटायर्ड जजों की सरकारी निकायों में नियुक्ति से न्यायपालिका की निष्पक्षता पर असर पड़ सकता है।
CJI चंद्रचूड़ के कार्यकाल के ऐतिहासिक फैसले
CJI चंद्रचूड़ का कार्यकाल लगभग दो साल का रहा, जो कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसलों का गवाह बना। इन फैसलों में अयोध्या में राम मंदिर का फैसला, इलेक्टोरल बॉन्ड को खारिज करना, समलैंगिक विवाह पर संसद को निर्णय लेने की सलाह देना, अनुच्छेद 370 हटाने को संवैधानिक रूप से सही ठहराना और दिल्ली सरकार के अधिकारों पर निर्णय शामिल हैं।