नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश की दो महिला न्यायिक अधिकारियों की बर्खास्तगी को अवैध करार देते हुए उन्हें बहाल करने का आदेश दिया। ये बर्खास्तगी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और राज्य सरकार की रिपोर्ट के आधार पर हुई थी। अदालत ने कहा कि महिला न्यायिक अधिकारियों के साथ संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए।

SC ने बर्खास्तगी को बताया अन्यायपूर्ण

न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा, “हम उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं। उन्होंने आर्थिक रूप से नुकसान झेला है। लंबी कानूनी लड़ाई ने उन्हें मानसिक तनाव में डाल दिया है। कई बार उन्हें दर्द निवारक दवाओं का सहारा लेना पड़ा ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।” सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल किए गए दो न्यायिक अधिकारियों में से एक का गर्भपात भी हो गया था।

SC ने स्वतः लिया संज्ञान

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में छह महिला सिविल जजों की बर्खास्तगी के मामले में खुद संज्ञान लेते हुए सुनवाई की। पिछले साल सितंबर में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से छह में से चार जजों की बहाली हुई थी, जबकि दो को अब तक राहत नहीं मिली थी। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या बढ़ना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके लिए अनुकूल कार्य वातावरण भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

महिलाओं की भागीदारी से न्यायपालिका होगी मजबूत

पीठ ने न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या बढ़ाने और उन्हें ऊंचे पदों तक पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से न्यायिक फैसलों की गुणवत्ता में सुधार होगा।” वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने महिला न्यायिक अधिकारियों का पक्ष रखा।

गर्भावस्था और मातृत्व में भेदभाव नहीं होना चाहिए

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि गर्भावस्था और मातृत्व के दौरान भेदभाव से मुक्ति तथा महिलाओं को कानूनों का समान संरक्षण मिलना उनके मौलिक अधिकार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गर्भपात का शारीरिक और मानसिक प्रभाव महिला पर गंभीर रूप से पड़ता है, जो लंबे समय तक बना रह सकता है।

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