नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को एक अहम निर्णय में कहा कि माल एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिनियम और सीमा शुल्क कानूनों के तहत भी अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू होता है। इस फैसले के अनुसार, अगर प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं हुई है, तब भी कोई व्यक्ति गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

सीमा शुल्क और जीएसटी अधिनियम के दंड प्रावधानों पर फैसला

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने सीमा शुल्क अधिनियम और जीएसटी अधिनियम के दंड प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इन याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि ये प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और संविधान के अनुरूप नहीं हैं।

सीआरपीसी और बीएनएसएस के तहत भी आरोपी को अधिकार

फैसला सुनाते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के प्रावधान अग्रिम जमानत के मुद्दों पर जीएसटी और सीमा शुल्क अधिनियमों के तहत भी लागू होंगे।

एफआईआर से पहले भी अग्रिम जमानत का अधिकार

अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति पर जीएसटी या सीमा शुल्क अधिनियमों के तहत गिरफ्तारी का खतरा है, तो वह प्राथमिकी दर्ज होने से पहले भी अग्रिम जमानत का अनुरोध कर सकता है। हालांकि, इस मामले में विस्तृत फैसले का इंतजार किया जा रहा है। यह मामला 2018 में राधिका अग्रवाल द्वारा दायर याचिका से संबंधित है।

जीएसटी अधिनियम की धारा 69 पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

अदालत ने जीएसटी अधिनियम की धारा 69 (गिरफ्तारी की शक्ति) में अस्पष्टता को लेकर भी चिंता व्यक्त की। न्यायालय ने कहा कि यदि आवश्यक हुआ, तो वह कानून की ऐसी व्याख्या करेगा जो नागरिकों की स्वतंत्रता को मजबूत करे और उन्हें बेवजह परेशान होने से बचाए।

गिरफ्तारी की शक्ति और आवश्यकता में अंतर

सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने यह भी कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति और गिरफ्तारी की आवश्यकता दो अलग चीजें हैं।

“कई बार हमें यह गलतफहमी हो जाती है कि जब तक गिरफ्तारी नहीं होगी, जांच पूरी नहीं हो सकती। लेकिन यह कानून का उद्देश्य नहीं है। यह गिरफ्तारी की शक्ति को सीमित करता है।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि अधिकारी को गिरफ्तारी करने की शक्ति दी गई है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हर स्थिति में गिरफ्तारी आवश्यक है।

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