नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज में संपन्न हुए महाकुंभ को ‘युग परिवर्तन की आहट’ बताते हुए कहा कि इस आयोजन ने भारत की विकास यात्रा के एक नए अध्याय का संदेश दिया है। उन्होंने इसे ‘विकसित भारत’ की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया।
महाकुंभ: एकता और सांस्कृतिक चेतना का संगम
प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर साझा किए अपने आलेख में महाकुंभ को एकता का पर्व कहा। उन्होंने कहा कि जब कोई राष्ट्र गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलकर नवचेतना के साथ आगे बढ़ता है, तो वह दृश्य प्रयागराज के महाकुंभ में स्पष्ट रूप से देखा गया।
महाकुंभ में हर वर्ग की भागीदारी
उन्होंने कहा कि महाकुंभ में संत-महात्मा, महिलाएं, युवा, बच्चे और वृद्ध सहित हर वर्ग के लोग शामिल हुए और इस आयोजन के माध्यम से देश की जागृत चेतना को महसूस किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आयोजन 140 करोड़ भारतीयों की आस्था का प्रतीक बना।
मैनेजमेंट और नीति विशेषज्ञों के लिए अध्ययन का विषय
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रयागराज का महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह मैनेजमेंट और नीति विशेषज्ञों के लिए भी अध्ययन का विषय बन गया। उन्होंने कहा कि इस स्तर के आयोजन की कोई तुलना विश्व में नहीं की जा सकती।
त्रिवेणी संगम पर करोड़ों श्रद्धालु
उन्होंने कहा कि त्रिवेणी संगम पर करोड़ों लोग बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के पहुंचे। लोग स्वतःस्फूर्त इस आयोजन का हिस्सा बने और पवित्र संगम में डुबकी लगाकर आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किया।
युवाओं की बढ़ती भागीदारी
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह देखना सुखद था कि भारत की युवा पीढ़ी महाकुंभ में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही थी। उन्होंने इसे संस्कृति और परंपराओं के प्रति युवाओं की जागरूकता का प्रतीक बताया।
महाकुंभ का प्रभाव गांव-गांव तक फैला
उन्होंने कहा कि महाकुंभ से लौटे श्रद्धालुओं ने अपने गांवों में संगम जल की कुछ बूंदें लेकर पहुंचे, जिससे उन लोगों को भी पुण्य लाभ मिला जो स्वयं महाकुंभ में नहीं जा सके।
इतिहास में पहली बार हुआ कुछ विशेष
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रयागराज में जितने श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद थी, उससे कई गुना अधिक लोग महाकुंभ में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि अमेरिका की आबादी से दोगुने लोग इस महाकुंभ में शामिल हुए।
महाकुंभ: भारत की नई ऊर्जा का प्रतीक
उन्होंने कहा कि जो शोधकर्ता आध्यात्मिकता पर अध्ययन करेंगे, वे पाएंगे कि भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करते हुए नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ रहा है।
महाकुंभ: भारत के भविष्य की आधारशिला
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस 144 वर्षों में पहली बार पड़े महाकुंभ ने भारत के लिए नए युग की नींव रखी है और यह संदेश ‘विकसित भारत’ का संदेश है।
एकता का महायज्ञ
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस आयोजन में हर वर्ग, जाति, क्षेत्र और विचारधारा के लोग शामिल हुए। यह ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का सजीव उदाहरण था। उन्होंने इसे ‘आत्मविश्वास और राष्ट्र निर्माण’ की दिशा में एक ऐतिहासिक क्षण बताया।
महाकुंभ में भारत के सामर्थ्य का दर्शन
प्रधानमंत्री ने महाभारत के एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह बालक श्रीकृष्ण ने माता यशोदा को अपने मुख में ब्रह्मांड का दर्शन कराया था, उसी तरह इस महाकुंभ में भारत और विश्व ने भारत के विशाल सामर्थ्य को देखा।
संस्कृति के प्रति संतों का योगदान
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की इस अद्वितीय शक्ति के बारे में भक्ति आंदोलन के संतों, विवेकानंद और महात्मा गांधी ने भी जागरूक किया था। उन्होंने कहा कि अगर आजादी के बाद भारत इस शक्ति को समझ पाता, तो यह देश और तेजी से आगे बढ़ता।
महाकुंभ: ‘विकसित भारत’ के लिए एक नई ऊर्जा
उन्होंने कहा कि अब भारत इस शक्ति को पहचानकर ‘विकसित भारत’ के संकल्प को पूरा करने के लिए आगे बढ़ रहा है। उन्होंने नदियों की स्वच्छता को लेकर ‘नदी उत्सव’ मनाने का भी आह्वान किया।
महाकुंभ की सफलता के लिए धन्यवाद
प्रधानमंत्री ने कहा कि महाकुंभ का आयोजन आसान नहीं था, लेकिन इसके बावजूद इसे सफलतापूर्वक संपन्न किया गया। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रशासन और प्रयागराज के नागरिकों को इसके सफल आयोजन के लिए धन्यवाद दिया।
महाकुंभ: सेवा और श्रद्धा का संगम
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस आयोजन में पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मियों, नाविकों, वाहन चालकों और भोजन बनाने वालों ने श्रद्धा और सेवा भाव के साथ कार्य किया।
महाकुंभ के दृश्यों से मजबूत हुआ आत्मविश्वास
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस महाकुंभ के दृश्यों को देखकर राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के प्रति उनका आत्मविश्वास और मजबूत हुआ। उन्होंने कहा कि जल्द ही वह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करेंगे और हर भारतीय के सुख-समृद्धि की प्रार्थना करेंगे।
महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना हमेशा प्रवाहित रहेगी
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह महाकुंभ 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा से शुरू हुआ और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन पूर्ण हुआ। उन्होंने विश्वास जताया कि गंगा की अविरल धारा की तरह, महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना और एकता की धारा भी निरंतर प्रवाहित होती रहेगी।