प्रयागराज: आस्था, अध्यात्म और सनातन संस्कृति का भव्य संगम माने जाने वाला महाकुंभ 2025 आज अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया। अंतिम शाही स्नान के साथ यह दिव्य आयोजन समाप्त हो गया, लेकिन इसके अनुभव और श्रद्धालुओं की भक्ति की गूंज लंबे समय तक बनी रहेगी। देश-विदेश से आए करोड़ों श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान कर अपने जीवन को पवित्र करने की आस्था प्रकट की।

आखिरी स्नान का महत्व

आज का अंतिम स्नान महाशिवरात्रि के पर्व पर हो रहा है, जो कि कुंभ के महत्वपूर्ण स्नानों में से एक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। संतों और श्रद्धालुओं का मानना है कि महाकुंभ का यह अंतिम दिन आध्यात्मिक ऊर्जा का चरम बिंदु होता है, जहां हर भक्त ईश्वर की कृपा पाने की इच्छा लेकर संगम में डुबकी लगाता है।

श्रद्धालुओं का जनसैलाब, धर्म और आस्था का अद्भुत संगम

प्रयागराज के घाटों पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी थी। अखंड हरि-कीर्तन, गूंजते मंत्र, घंटियों की आवाज और ‘हर हर गंगे’ के जयघोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। देशभर से आए संन्यासी, अखाड़ों के साधु-संत, नागा साधु, श्रद्धालु और पर्यटक इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बने।

शाही स्नान की भव्यता

महाकुंभ में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र शाही स्नान होता है, जिसमें 13 अखाड़ों के साधु-संत पारंपरिक रूप से पेशवाई निकालते हुए संगम पहुंचते हैं। अद्भुत नजारा तब देखने को मिला जब नागा साधुओं ने ध्वज और शंखध्वनि के साथ संगम में डुबकी लगाई। यह दृश्य देखने के लिए लाखों श्रद्धालु घाटों पर मौजूद रहे।

प्रशासन ने किए कड़े इंतजाम

महाकुंभ के अंतिम स्नान को लेकर प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहा। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए हजारों पुलिसकर्मी, पैरा मिलिट्री फोर्स और ड्रोन कैमरों से निगरानी रखी गई। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष चिकित्सा शिविर, खोया-पाया केंद्र और 24 घंटे हेल्पलाइन सेवाएं चलाई गईं।

संतों ने दिया आध्यात्मिक संदेश

अंतिम स्नान के अवसर पर कई महामंडलेश्वरों और संतों ने धर्म, शांति और सत्कर्म पर प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और मानवता के उत्थान का पर्व है। साधु-संतों ने लोगों को सत्य, अहिंसा और सनातन संस्कृति के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी।

विदाई के साथ अगली प्रतीक्षा

जैसे-जैसे अंतिम स्नान पूरा हुआ, वैसे-वैसे श्रद्धालु महाकुंभ के समापन की भावना से भावुक होते दिखे। हालांकि, सनातन परंपरा में आस्था रखने वालों के लिए यह एक नई शुरुआत भी है। अब अगला महाकुंभ 2037 में हरिद्वार में आयोजित होगा, जिसकी प्रतीक्षा भक्तों ने अभी से शुरू कर दी है।

महाकुंभ 2025 अपने साथ कई यादें छोड़कर जा रहा है। यह न सिर्फ आस्था का महापर्व था, बल्कि भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और सनातन धर्म की अद्भुत झलक भी। अंतिम स्नान के साथ यह महासंगम संपन्न हो गया, लेकिन इसकी पवित्रता और भक्ति की अनुभूति हमेशा श्रद्धालुओं के मन में बनी रहेगी।

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