नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें दिल्ली सरकार को पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (पीएम-एबीएचआईएम) योजना के क्रियान्वयन के लिए केंद्र सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की और दिल्ली सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया।
दिल्ली सरकार के वकील ने दी यह दलील
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने दलील दी कि केंद्र सरकार की शक्तियां राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के संदर्भ में राज्य सूची में निर्धारित मामलों तक ही सीमित हैं, जिनमें सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि शामिल हैं। वकील ने यह भी तर्क दिया कि उच्च न्यायालय का आदेश दिल्ली सरकार की शक्तियों को पुनः परिभाषित कर रहा है, विशेष रूप से स्वास्थ्य क्षेत्र में।
दिल्ली सरकार को मजबूरी में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव
दिल्ली सरकार के वकील ने यह भी आरोप लगाया कि उच्च न्यायालय का आदेश दिल्ली सरकार को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर रहा है। उन्हें यह डर था कि अगर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए तो केंद्र और राज्य सरकार के बीच व्यय का 60 प्रतिशत केंद्र और 40 प्रतिशत दिल्ली सरकार को वहन करना होगा। इसके अलावा, दिल्ली सरकार ने चालू व्यय के मुद्दे को भी उठाया।
हाई कोर्ट का आदेश और सुप्रीम कोर्ट की रोक
पिछले महीने, दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को 5 जनवरी तक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का आदेश दिया था, ताकि पीएम-आयुष्मान भारत योजना राष्ट्रीय राजधानी में लागू हो सके। दिल्ली सरकार ने इस योजना का कड़ा विरोध किया, यह कहते हुए कि दिल्ली के नागरिकों को इस योजना के तहत मिलने वाली सुविधाएं पहले से बेहतर हैं।
स्वतः संज्ञान पर हाई कोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए यह आदेश पारित किया था। अदालत ने राज्य सरकार के अस्पतालों में आईसीयू बेड और वेंटिलेटर सुविधाओं की उपलब्धता से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय लिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
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