रांची/झारखंड: हाल ही में संपन्न हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद, बीजेपी अब अपनी आगे की रणनीति पर विचार कर रही है और आत्मचिंतन कर रही है।

हार के बाद बीजेपी की नई रणनीति

विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है। पार्टी को राज्य में एक मजबूत नेतृत्व की तलाश थी, और रघुवर दास भी सक्रिय राजनीति में वापसी की इच्छा रखते हैं। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि रघुवर दास एक बार फिर बीजेपी में शामिल होंगे और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

रघुवर दास का बयान

जब रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद झारखंड पहुंचे, तो उन्होंने कहा था कि वे राज्यपाल पद से संतुष्ट नहीं थे। रघुवर दास ने यह भी कहा कि उन्हें जनता के बीच रहना पसंद है। ओडिशा में राज्यपाल रहते हुए भी उन्होंने 30 जिलों के लोगों से संवाद किया। रघुवर दास ने स्पष्ट किया कि वे अब सक्रिय राजनीति में लौटना चाहते हैं।

बीजेपी क्यों चाहती है रघुवर दास की वापसी

बीजेपी अब रघुवर दास को फिर से पार्टी में शामिल करना चाहती है, क्योंकि आदिवासी वोटरों से पार्टी को उम्मीद के अनुसार समर्थन नहीं मिला। झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में डेमोग्राफिक चेंज और स्थानीय मुद्दों को उठाने के बावजूद पार्टी को कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके कारण अब बीजेपी ओबीसी वोटरों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है। चूंकि रघुवर दास ओबीसी समाज से आते हैं, वे इस रणनीति में पूरी तरह फिट बैठते हैं।

विश्लेषक क्या कहते हैं

राजनीतिक विश्लेषक गौतम चौधरी का कहना है कि झारखंड में बीजेपी की राजनीति हमेशा ओबीसी और ट्राइबल वोट बैंक के आसपास रही है। हाल के चुनावों में पार्टी ने ट्राइबल वोट बैंक को साधने के लिए कई बड़े चेहरे पार्टी में शामिल किए, लेकिन फिर भी सफलता नहीं मिल पाई। इसी वजह से पार्टी अब रघुवर दास को बड़ी जिम्मेदारी देने पर विचार कर रही है।

रघुवर दास की स्थिति

रघुवर दास ने जमशेदपुर पूर्वी से पांच बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अपनी मजबूत स्थिति का प्रदर्शन किया है। इस बार विधानसभा चुनाव में उनकी बहू ने भी शानदार जीत दर्ज की, जो उनकी राजनीतिक पकड़ को साबित करता है। रघुवर दास बीजेपी में निचले स्तर तक काम करने वाले नेता रहे हैं, और वे झारखंड के पहले सीएम थे जिन्होंने अपने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। ऐसे में बीजेपी अब एक बार फिर से उनकी नेतृत्व क्षमता पर भरोसा जताते हुए अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है।

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