नई दिल्ली: अमेरिकी सरकार अब अपने दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों से एकत्र किए गए वायु गुणवत्ता डेटा को सार्वजनिक रूप से साझा नहीं करेगी। इस फैसले से पर्यावरण वैज्ञानिक और विशेषज्ञ चिंतित हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह पहल वैश्विक स्तर पर वायु गुणवत्ता की निगरानी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार के लिए महत्वपूर्ण थी।
एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के बाद, अमेरिकी विदेश विभाग ने बुधवार को घोषणा की कि उसका वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम अब पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के एयरनाउ ऐप और अन्य प्लेटफार्मों पर प्रदूषण डेटा साझा नहीं करेगा। इससे पहले, यह डेटा दुनिया भर के वैज्ञानिकों और नागरिकों को विभिन्न शहरों की वायु गुणवत्ता का आकलन करने में मदद करता था।
वित्तीय कारणों से डेटा साझा करने पर रोक
रिपोर्ट्स के अनुसार, आर्थिक बाधाओं के कारण यह कदम उठाया गया है। अमेरिकी सरकार के बयान में कहा गया कि उन्होंने इस नेटवर्क को बंद कर दिया है। हालांकि, दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को अपने मॉनिटर चालू रखने के निर्देश दिए गए हैं। भविष्य में यदि फिर से वित्त पोषण उपलब्ध होता है, तो डेटा साझा करने की प्रक्रिया बहाल की जा सकती है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पर्यावरण और जलवायु से जुड़ी पहलों को प्राथमिकता नहीं देने का निर्णय लिया है।
वायु गुणवत्ता डेटा क्यों महत्वपूर्ण है?
अमेरिका का यह वायु गुणवत्ता मॉनीटर हवा में मौजूद खतरनाक महीन कण PM2.5 को मापता है। विशेषज्ञों के अनुसार, PM2.5 फेफड़ों तक पहुंचकर श्वसन संबंधी समस्याओं, हृदय रोग और समय से पहले मौत का कारण बन सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार, हर साल वायु प्रदूषण के कारण लगभग 7 मिलियन लोगों की जान जाती है।
वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया: ‘यह बड़ा झटका है’
अमेरिकी सरकार द्वारा डेटा साझा करने पर रोक लगाने के तुरंत बाद वैज्ञानिकों ने इसे वैश्विक वायु गुणवत्ता निगरानी के लिए एक बड़ा झटका बताया। उनका कहना है कि अमेरिकी डेटा विश्वसनीय था और इसकी मदद से दुनियाभर में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा सकती थी।
नई दिल्ली स्थित ‘सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव’ के वायु प्रदूषण विशेषज्ञ भार्गव कृष्णा ने इसे “वायु गुणवत्ता अनुसंधान के लिए एक बड़ा नुकसान” बताया। उन्होंने कहा कि कई विकासशील देशों में मुट्ठीभर सेंसर की सहायता से वायु गुणवत्ता को समझा जाता था।
बोगोटा, कोलंबिया स्थित वायु गुणवत्ता सलाहकार एलेजांद्रो पिराकोका मेयोर्गा ने इस फैसले को “वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण” बताया। वहीं, पाकिस्तान के पर्यावरण विशेषज्ञ और अधिवक्ता खालिद खान ने भी इस कदम पर चिंता व्यक्त की।
पर्यावरण निगरानी पर असर
खान ने बताया कि अमेरिकी मॉनिटर से पाकिस्तान के पेशावर जैसे अत्यधिक प्रदूषित शहरों की वास्तविक समय (रियल-टाइम) में निगरानी की जाती थी। इस डेटा के जरिए नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं और आम जनता को अपने स्वास्थ्य के संबंध में सही निर्णय लेने में सहायता मिलती थी।
उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका द्वारा यह निगरानी बंद करने से पर्यावरण संबंधी जानकारी में एक बड़ा अंतर आ जाएगा, जिससे लोगों को खतरनाक वायु गुणवत्ता की सटीक जानकारी नहीं मिल पाएगी। खासकर कमजोर वर्गों के लिए यह स्थिति और भी गंभीर होगी, क्योंकि उनके पास अन्य विश्वसनीय डेटा तक पहुंच सीमित होती है।