रांची/झारखंड: विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (CAG) ने झारखंड के सरकारी अस्पतालों और भवन निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड की ऑडिट रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में 2016-17 से 2021-22 तक की अवधि में स्वास्थ्य सेवाओं और श्रमिक कल्याण योजनाओं की खामियों को उजागर किया गया। रिपोर्ट के बाद प्रधान महालेखाकार इंदु अग्रवाल ने एक प्रेस वार्ता में इन खुलासों को सार्वजनिक किया। रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि झारखंड की स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल हैं और महामारी के दौरान भी सरकारी तंत्र पूरी तरह से असफल रहा।
बिना उपयोग के खराब हो गए रेमडे
सिविर इंजेक्शनCAG रिपोर्ट में यह सामने आया कि राज्य के विभिन्न जिलों और मुख्यालय के वेयरहाउस में रखे रेमडेसिविर इंजेक्शन बड़ी मात्रा में एक्सपायर हो गए। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के एक अधिकारी के मौखिक निर्देश पर बिना किसी दस्तावेजी प्रक्रिया के दो निजी एजेंसियों को हजारों वायल सौंप दिए गए। इस पूरे मामले की जानकारी ड्रग्स कंट्रोलर को भी नहीं दी गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में दो सरकारें आईं, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई सुधार नहीं हुआ।
स्वास्थ्य सेवाओं में भारी स्टाफ की कमी
CAG रिपोर्ट में बताया गया कि 2016-17 से 2021-22 के बीच झारखंड में डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ की भारी कमी रही।राज्य में मेडिकल अफसर और विशेषज्ञ डॉक्टरों के 6,334 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से केवल 2,210 पदों पर ही नियुक्तियां हुईं।
राष्ट्रीय औसत के मुकाबले झारखंड में डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है। देशभर में 10,000 लोगों पर 37 डॉक्टर हैं, जबकि झारखंड में सिर्फ 4 डॉक्टर प्रति 10,000 आबादी हैं।
नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी के कारण अस्पतालों में मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है।ओपीडी में डॉक्टर प्रति मरीज सिर्फ 5 मिनट ही दे पा रहे हैं, जिससे इलाज की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
मेडिकल कॉलेजों में स्टाफ की कमी
CAG रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि झारखंड के 6 मेडिकल कॉलेजों में 48% फैकल्टी पद खाली हैं।गैर-शैक्षणिक स्टाफ के 45% पद भी खाली पड़े हैं।आयुष कॉलेजों में 60% से 66% तक शिक्षकों की कमी है।होम्योपैथी कॉलेजों में यह संख्या 71% से 87% तक पहुंच चुकी है।
अस्पतालों में नहीं मिल रही जरूरी सेवाएं
सीएजी की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि राज्य के जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों को जरूरी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
जिला अस्पतालों में सामान्य सर्जरी, हड्डी रोग और मानसिक रोग विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं थे।सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्त्री रोग, दंत चिकित्सा और नेत्र रोग विशेषज्ञों की कमी थी।
जिन 4 जिला अस्पतालों का ऑडिट किया गया, उनमें से किसी में भी आपातकालीन ENT OT सुविधा नहीं थी।5 जिला अस्पतालों में से 3 में ICU मौजूद नहीं था।
गर्भवती महिलाओं को नहीं मिली पर्याप्त देखभाल
CAG रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में गर्भवती महिलाओं की देखभाल में भी लापरवाही बरती गई।18% गर्भवती महिलाओं को ANC (एंटीनेटल केयर) का पूरा लाभ नहीं मिला।
29% महिलाओं को टेटनस का दूसरा टीका नहीं दिया गया।22% महिलाओं को आयरन की गोलियां नहीं मिलीं।35% से 93% गर्भवती महिलाओं को प्रसव के 48 घंटे के भीतर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।राज्य की 22 मोबाइल मेडिकल यूनिट में से सिर्फ 11 ही कार्यशील हैं।
दवाओं की खरीद में लापरवाही
CAG रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में सरकारी अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की भारी कमी थी।झारखंड मेडिकल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एंड प्रोक्योरमेंट कॉर्पोरेशन (JMHIDPCL) के पास 1395.67 करोड़ रुपये का बजट था, लेकिन 2016 से 2022 तक सिर्फ 279.39 करोड़ (20%) रुपये ही दवाओं की खरीद पर खर्च किए गए।
अस्पतालों को 77% से 88% तक आवश्यक दवाएं नहीं मिल पाईं।रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि 2018-19 और 2021-22 में झारखंड सरकार ने एक प्रतिबंधित कंपनी से 9.55 करोड़ रुपये की दवा खरीदी।
कल्याण बोर्ड की लापरवाही से मजदूरों को नुकसान
CAG ने राज्य में बिल्डिंग एंड अदर्स कंस्ट्रक्शन वर्कर्स कल्याण बोर्ड की भी ऑडिट की, जिसमें कई अनियमितताएं पाई गईं।वेलफेयर फंड में पर्याप्त पैसा होने के बावजूद मजदूरों के लिए योजनाओं पर खर्च नहीं किया गया।
अभी भी बड़ी संख्या में मजदूरों का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, जिससे वे हाउसिंग लोन, पेंशन और अन्य सरकारी लाभों से वंचित हैं।जिन 10,710 मजदूरों को पेंशन मिलनी चाहिए थी, उनमें से सिर्फ 159 को ही पेंशन दी गई।
मजदूरों की सुरक्षा की अनदेखी
CAG रिपोर्ट में कहा गया कि झारखंड में निर्माण स्थलों पर मजदूरों की सुरक्षा को लेकर गंभीर लापरवाही बरती जा रही है।अधिकांश निर्माण स्थलों पर सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया जा रहा।झारखंड सरकार ने मजदूरों के कल्याण के लिए वेलफेयर बोर्ड को 504 करोड़ रुपये की राशि ट्रांसफर नहीं की।
सरकार के लिए चेतावनी
CAG रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि झारखंड की स्वास्थ्य सेवाएं और मजदूर कल्याण योजनाएं दोनों ही विफल साबित हुई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार को इस पर तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और सुधार के उपाय करने चाहिए।
अब देखना यह होगा कि विधानसभा में पेश की गई इस रिपोर्ट के बाद सरकार इन कमियों को दूर करने के लिए क्या कदम उठाती है।