नई दिल्ली: भारत में हरित हाइड्रोजन (ग्रीन हाइड्रोजन) के निर्माण को लेकर एनटीपीसी ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण योजना की घोषणा की है। इसके तहत, ₹1.85 लाख करोड़ का निवेश किया जाएगा, जिससे भारत की ऊर्जा परिवर्तन (Energy Transition) यात्रा को एक नई दिशा मिलेगी। इस प्रॉजेक्ट का उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन बढ़ाना है, जो पर्यावरण के लिए अत्यंत लाभकारी है। इस लेख में हम ग्रीन हाइड्रोजन के महत्व, एनटीपीसी की योजना, इसके लाभ, चुनौतियां, और भविष्य की दिशा पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

ग्रीन हाइड्रोजन का महत्व

ग्रीन हाइड्रोजन एक प्रकार का पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त ईंधन है। यह रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों, जैसे कि सूरज, हवा, और पानी से उत्पन्न बिजली के द्वारा इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के माध्यम से बनाया जाता है। इस प्रक्रिया में पानी को तोड़कर हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अलग किए जाते हैं, और यह पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त होता है। इसके विपरीत, ग्रे और ब्लू हाइड्रोजन का उत्पादन जीवाश्म ईंधनों से होता है, जो अधिक प्रदूषण उत्पन्न करते हैं और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं। इस कारण, ग्रीन हाइड्रोजन का महत्व बढ़ रहा है क्योंकि यह हमारे पर्यावरण को स्वच्छ रखने के साथ-साथ ऊर्जा सुरक्षा को भी सुनिश्चित करता है।

भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की आवश्यकता

भारत ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का संकल्प लिया है, और इसके लिए ग्रीन हाइड्रोजन एक महत्वपूर्ण उपाय साबित हो सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन उन क्षेत्रों में सबसे अधिक उपयोगी हो सकता है, जहां कार्बन उत्सर्जन को कम करना या रोकना मुश्किल है, जैसे स्टील उद्योग, रिफाइनरी, और अन्य भारी उद्योगों में। इसके अलावा, ट्रांसपोर्टेशन और भारी वाहनों के लिए भी ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे प्रदूषण कम होगा और ऊर्जा की खपत अधिक प्रभावी हो सकेगी।

एनटीपीसी का ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट

एनटीपीसी ने एक विशाल ग्रीन हाइड्रोजन प्रोजेक्ट की घोषणा की है, जिसे आंध्र प्रदेश के पुडिमडाका में स्थापित किया जाएगा। यह प्रॉजेक्ट 1,600 एकड़ क्षेत्र में फैला होगा और इसमें रिन्यूएबल एनर्जी प्रॉजेक्ट, इलेक्ट्रोलाइज़र, ग्रीन केमिकल प्रोडक्शन, और सहायक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे डिसैलिनेशन प्लांट और ट्रांसमिशन कॉरिडोर शामिल होंगे। इस प्रॉजेक्ट का वार्षिक उत्पादन लक्ष्य 1,500 टन ग्रीन हाइड्रोजन और 7,500 टन ग्रीन मिथेनॉल और सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) का उत्पादन करना है।

एनटीपीसी का यह प्रोजेक्ट भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकता है और साथ ही इससे भारत के ऊर्जा क्षेत्र को भी मजबूती मिलेगी। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से भारत ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में वैश्विक लीडर बन सकता है और यह देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन

भारत का नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन 2023 में शुरू हुआ था और इसका उद्देश्य 2030 तक हर साल पांच मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। इस मिशन के तहत ₹8 लाख करोड़ से अधिक निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य रखा गया है, जो भारत के लिए एक बड़ा आर्थिक अवसर हो सकता है। इसके अलावा, इस मिशन से 6 लाख से अधिक रोजगार सृजित होने की संभावना है, और यह भारत के जीवाश्म ईंधन आयात को ₹1 लाख करोड़ तक कम कर सकता है।

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को सफल बनाने के लिए SIGHT (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition) फंड की स्थापना की गई है, जिसमें ₹13,000 करोड़ का आवंटन किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रीन हाइड्रोजन की मांग बढ़ाना और इसकी लागत को कम करना है, ताकि भारत ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के मामले में वैश्विक नेता बन सके।

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की चुनौतियाँ

जहां एक ओर ग्रीन हाइड्रोजन के कई लाभ हैं, वहीं इसके निर्माण और विस्तार में कुछ प्रमुख चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत है। वर्तमान में, ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की लागत ₹305 से ₹480 प्रति किलोग्राम तक हो सकती है, जबकि ग्रे और ब्लू हाइड्रोजन की लागत ₹166 से ₹209 प्रति किलोग्राम तक है। इससे निवेशकों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन में निवेश करना एक चुनौती हो सकता है।इसके अलावा, इलेक्ट्रोलाइज़र टेक्नोलॉजी की लागत भी काफी अधिक है, जो ₹43,690 से ₹1,57,286 प्रति किलोवाट तक हो सकती है। साथ ही, घरेलू स्तर पर इलेक्ट्रोलाइज़र और अन्य महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स के उत्पादन की कमी भी एक बड़ी समस्या है। भारत को इन कंपोनेंट्स के आयात पर निर्भर रहना पड़ता है, जो इसके उत्पादन की लागत को और बढ़ा सकता है।

आर्थिक और वित्तीय चुनौतियाँ

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लिए निवेशकों को आकर्षित करना भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है। यदि निवेशकों को यह लगता है कि उनका निवेश जोखिमपूर्ण हो सकता है, तो वे इस प्रोजेक्ट में निवेश करने से हिचकिचा सकते हैं। इसके अलावा, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन में आने वाली वित्तीय चुनौतियाँ भी इस मिशन को आगे बढ़ाने में रुकावट डाल सकती हैं। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए, भारत को सरकार की ओर से आर्थिक और नीति समर्थन की आवश्यकता होगी।

ग्रीन हाइड्रोजन का भविष्य और अवसर

भारत के पास पर्याप्त मात्रा में रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोत हैं, जो ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए आवश्यक हैं। सूरज और हवा से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग करके भारत सस्ते और अधिक प्रभावी तरीके से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकता है। इसके अलावा, भारत की स्किल्ड वर्कफोर्स और तकनीकी क्षमता भी इस मिशन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

भारत के पास ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त संसाधन और क्षमता है, जो न केवल देश के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी लाभकारी साबित हो सकते हैं। ग्रीन हाइड्रोजन का निर्यात करने से भारत को वैश्विक ऊर्जा बाजार में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिल सकता है। इसके साथ ही, ग्रीन हाइड्रोजन को दूसरे देशों के साथ साझेदारी में उपयोग करने से भारत को एक बड़ी आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है।

ग्रीन हाइड्रोजन और ऊर्जा सुरक्षा

भारत की ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से ग्रीन हाइड्रोजन एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। भारत को अपने ऊर्जा संसाधनों के लिए 80% आयात पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे न केवल देश की आर्थिक स्थिति पर दबाव पड़ता है, बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर भी ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ता है। ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन एक घरेलू समाधान हो सकता है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ा सकता है।

इसके अलावा, ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग शहरी क्षेत्रों में वाहनों के ईंधन के रूप में किया जा सकता है, जिससे वायु प्रदूषण में कमी आएगी और शहरी वातावरण में सुधार होगा। ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल स्टील और सीमेंट जैसे भारी उद्योगों में भी किया जा सकता है, जिससे इन उद्योगों के प्रदूषण को कम किया जा सकेगा।

मिशन को पूरा करने के लिए आवश्यक कदम

भारत को ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को सफल बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे:

1. रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन बढ़ाना: 2030 तक पांच मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए भारत को अतिरिक्त 100-125GW रिन्यूएबल ऊर्जा की आवश्यकता होगी।

2. घरेलू उत्पादन की क्षमता बढ़ाना: भारत में इलेक्ट्रोलाइज़र और अन्य तकनीकी उपकरणों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि लागत कम हो सके और आत्मनिर्भरता बढ़ सके।

3. सरकारी और निजी क्षेत्र का सहयोग: सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग बढ़ाने से इस मिशन को बल मिलेगा और प्रोडक्शन में वृद्धि हो सकेगी।

4. रिसर्च और विकास: नई तकनीकों का विकास करने के लिए सरकार को रिसर्च और डेवलपमेंट में निवेश करना होगा, जिससे ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत में कमी आए।

निष्कर्ष

भारत का ग्रीन हाइड्रोजन मिशन न केवल पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह देश की ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिति और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भी सहायक होगा। यह मिशन भारत को वैश्विक ऊर्जा ट्रांजिशन में एक प्रमुख नेता बना सकता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण सुनिश्चित कर सकता है। ग्रीन हाइड्रोजन की मदद से भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को स्वदेशी रूप से पूरा करने में सक्षम हो सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत बना सकता है।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं और यह ईटीवी भारत का दृष्टिकोण नहीं है।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here