सिवान: बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने बाकी हैं, और इसको लेकर सभी पार्टियाँ चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं। एनडीए की ओर से सूबे के हर जिले में कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। हाल ही में सिवान में एक कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ, जिसमें जदयू के एक एमएलसी के खिलाफ कार्यकर्ताओं ने भारी विरोध जताया। उनके भाषण के दौरान हंगामा हुआ, जिसके बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष को हस्तक्षेप करना पड़ा। आइए जानते हैं कि यह मामला कैसे बढ़ा।
सिवान कार्यकर्ता सम्मेलन में हुआ बवाल
सिवान में मंगलवार को एनडीए का कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें बिहार एनडीए के सभी घटक दलों के प्रदेश अध्यक्ष एक मंच पर मौजूद थे। इस सम्मेलन में जिले के एनडीए कार्यकर्ताओं का जोश देखने लायक था। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा, लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी, और हम के प्रदेश अध्यक्ष अनिल कुमार ने बारी-बारी से सभा को संबोधित किया।
भ्रमित कार्यकर्ता और राजद का मुद्दा
इसी दौरान, जदयू के विधान पार्षद वीरेंद्र नारायण यादव के भाषण में गड़बड़ी हो गई। उन्होंने बार-बार ‘राजग’ (एनडीए) शब्द का उपयोग किया, जिसे कार्यकर्ताओं ने ‘राजद’ समझ लिया और हंगामा शुरू कर दिया। इसके बाद बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल को स्थिति संभालने के लिए आना पड़ा। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं में राजद के प्रति इतनी नाराजगी है कि वे उसका नाम तक नहीं सुनना चाहते। साथ ही, उन्होंने यादव को हिंदी के शब्दों के चयन में सतर्क रहने की सलाह दी। दरअसल, यादव के पिछले चुनाव राजद-जदयू गठबंधन के समय हुए थे, और उनकी छवि अब भी राजद से जुड़ी हुई है।
‘2025 फिर से नीतीश’ का नारा
सम्मेलन में सिवान जिले के संभावित एनडीए उम्मीदवारों ने शक्ति प्रदर्शन किया और भारी संख्या में समर्थकों को जुटाया। भाजपा कार्यकर्ताओं की उपस्थिति सबसे ज्यादा रही। सभी वक्ताओं ने ‘2025 फिर से नीतीश’ के नारे को प्रमुखता से दोहराया। गोरेयाकोठी के विधायक देवेशकांत सिंह ने इस नारे को कई बार बुलवाया।
सिवान जिले में महागठबंधन का दबदबा
2020 के विधानसभा चुनाव में सिवान जिले की आठ सीटों में से सिर्फ दो सीटें एनडीए के खाते में आईं थीं। गोरेयाकोठी से देवेशकांत सिंह और दारौंदा से करनजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह विजयी हुए थे। बाकी छह सीटें महागठबंधन को मिली थीं। इस बार सभी सीटों पर एनडीए के घटक दलों की निगाहें हैं, लेकिन यह तय नहीं है कि किस दल के पास कौन सी सीट जाएगी। इस कारण सभी पार्टियाँ अपनी-अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगी हैं।
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