नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 15 मुकदमों को एक साथ जोड़ने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर कहा कि इसे बाद में उठाया जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि मुकदमों के कंसोलिडेशन के मुद्दे पर अदालत को हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए?

यह मामला भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने आया, जिसमें जस्टिस संजय कुमार भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि पहली नजर में सभी मुकदमों को एक साथ लाने के हाई कोर्ट के फैसले का समर्थन किया गया है, क्योंकि यह दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद है। पीठ ने पूछा, “क्या कारण है कि हमें इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए?”

शाही ईदगाह ट्रस्ट के वकील का तर्क

इस बीच शाही ईदगाह ट्रस्ट के वकील ने तर्क दिया कि समान प्रकृति के मुकदमों को एक साथ जोड़ना सही है। हाई कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए वकील ने कहा कि इसमें यह कहा गया था कि एक साथ सभी याचिकाओं पर विचार किया जाएगा, जो जटिलताओं का कारण बन सकता है। हालांकि, पीठ इस तर्क से सहमत नहीं थी।

“समेकन से क्या फर्क पड़ेगा?”

पीठ ने कहा कि यह दोनों पक्षों के लिए बेहतर होगा कि एक से अधिक कार्यवाहियों से बचा जाए। पीठ ने कहा, “अगर इसे समेकित कर दिया जाए तो क्या फर्क पड़ेगा?” इसके बाद कोर्ट ने कहा, “समेकन से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, हम इसे स्थगित कर देते हैं और अप्रैल 2025 के पहले सप्ताह में फिर से सुनवाई करेंगे।”

शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे

पिछले साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वे करने का निर्देश दिया गया था। अगस्त 2024 में, हाई कोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से संबंधित 18 मुकदमों में एक साथ विचार करने की अनुमति दे दी थी। हाई कोर्ट ने मस्जिद प्रबंधन समिति की चुनौती को खारिज कर दिया था।

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