पटना: बिहार सरकार भ्रष्टाचार पर “जीरो टॉलरेंस” नीति का दावा करती है, जिसमें कहा गया है कि सरकार न किसी को फंसाती है, न बचाती है। भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी अधिकारियों पर कार्रवाई का भी दावा किया जाता है। हालांकि, यह सब अक्सर दिखावे तक ही सीमित लगता है। आर्थिक अपराध इकाई (EOU) द्वारा दर्ज केसों की जांच बेहद धीमी गति से चल रही है। आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामलों में वर्षों बीतने के बाद भी न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल नहीं हो पा रहे हैं, जिससे आरोपी अधिकारियों को सीधा फायदा मिल रहा है। स्थापना से लेकर अब तक EOU ने 85 आय से अधिक संपत्ति के केस दर्ज किए हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 43% मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई है।

EOU के आंकड़े: 85 केस, लेकिन सिर्फ 37 में चार्जशीट

गृह विभाग के प्रधान सचिव अरविंद चौधरी ने बताया कि आर्थिक अपराध इकाई ने अब तक लोक सेवकों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जन के 85 केस दर्ज किए हैं। इनमें से 37 मामलों में न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया गया, जबकि 48 मामले अब भी लंबित हैं। साथ ही 26 मामलों में संपत्ति जब्ती के आदेश जारी किए गए हैं, लेकिन जांच की धीमी प्रक्रिया पर सवाल बने हुए हैं।

2018-19 के बाद अधिकांश केसों में धीमी जांच

2019 में EOU ने केवल एक केस दर्ज किया था, जिसमें जल संसाधन विभाग के अभियंता मुरलीधर सिंह और उनकी पत्नी शामिल थे। पांच साल बाद भी यह केस जांच के अधीन है। 2021 में बालू खनन से जुड़े 15 मामलों में से 14 अब भी लंबित हैं। पालीगंज के तत्कालीन एसडीपीओ तनवीर अहमद के खिलाफ सबूत न मिलने पर केस बंद कर दिया गया। बाकी मामलों में, जिनमें परिवहन, खनन, राजस्व, और पुलिस अधिकारियों के नाम हैं, अब तक जांच जारी है।

2022: 19 मामलों में सिर्फ 1 चार्जशीट

2022 में EOU ने 19 सरकारी सेवकों के खिलाफ कार्रवाई की। इनमें से 18 केस अभी तक अनुसंधान में हैं और केवल एक मामले में चार्जशीट दाखिल की गई है। –

2023: केवल 1 केस दर्ज, वह भी लंबित

2023 में EOU ने केवल एक सरकारी अधिकारी, एसएफसी के सहायक प्रबंधक शिशिर कुमार वर्मा, के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया। यह केस भी अभी अनुसंधान में ही है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति केवल कागजों पर नजर आती है। जांच की धीमी गति और चार्जशीट की कम संख्या इस नीति की कमजोरियों को उजागर करती हैं।

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