नई दिल्ली: हैदराबाद के छात्रों ने सीवेज सफाई के दौरान होने वाले हादसों को रोकने के लिए एक किफायती और प्रभावी उपकरण विकसित किया है। यह डिवाइस पारंपरिक गैस डिटेक्टरों की तुलना में सस्ता होने के साथ-साथ अधिक उपयोगी है। यह गहरी नालियों और सीवर लाइनों में मौजूद जहरीली गैसों, जैसे कि हाइड्रोजन सल्फाइड और मीथेन, की पहचान करने में सक्षम है, जिससे सफाई कर्मचारियों की जान बचाई जा सकेगी।
सफाई कर्मियों के लिए वरदान बनेगा यह डिवाइस
उस्मानिया यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों की एक टीम ने यह किफायती उपकरण तैयार किया है, जो सीवेज में मौजूद खतरनाक गैसों का पता लगा सकता है, चाहे मैनहोल पानी से भरा हो या नहीं। ‘सीवेज मॉनिटरिंग सिस्टम’ नामक यह डिवाइस सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया है। अक्सर देखा गया है कि सीवर टैंक साफ करते समय मजदूरों की जान चली जाती है, लेकिन यह उपकरण ऐसे हादसों को रोकने में मदद करेगा।
अधिकारियों को अलर्ट करने की खास तकनीक
सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर के. शशिकांत के मार्गदर्शन में छात्रों ने इस डिवाइस में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) तकनीक का उपयोग किया है, जिससे दूर से ही सीवेज की स्थिति पर नजर रखी जा सकती है। इस सिस्टम में लगे सेंसर मीथेन और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी घातक गैसों का तुरंत पता लगा सकते हैं। अगर किसी मैनहोल में खतरनाक गैसों की मात्रा अधिक हो जाती है या ओवरफ्लो की स्थिति बनती है, तो यह उपकरण जीपीएस-सक्षम नोटिफिकेशन के जरिए जल बोर्ड के अधिकारियों को तुरंत सतर्क कर देता है।
पेटेंट कराने की तैयारी में जुटी टीम
इस तकनीक को चंडीगढ़ में आयोजित ‘सस्टेनेबल स्मार्ट सिटीज इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस’ में प्रस्तुत किया गया, जहां इसकी किफायती लागत और व्यावहारिकता की सराहना की गई। इस उपकरण की निर्माण लागत मात्र 2,500 रुपये है। प्रोफेसर शशिकांत ने बताया कि “टीम इस उपकरण का पेटेंट कराने की योजना बना रही है, ताकि इसे बड़े पैमाने पर अपनाकर सफाई कर्मियों की मौतों को रोका जा सके।”




































