पटना: क्या एक बार फिर नीतीश कुमार और बीजेपी के बीच घमासान शुरू हो गया है? आज नीतीश कुमार ने इस दिशा में एक अहम कदम उठाया। जेडीयू ने मणिपुर में बीजेपी की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। जेडीयू के मणिपुर प्रदेश अध्यक्ष ने राज्यपाल को पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी अब राज्य में विपक्षी दल के रूप में कार्य कर रही है और बीजेपी के साथ उनका कोई गठबंधन नहीं है।

हालांकि, मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीटों में से बीजेपी के पास बहुमत से कहीं अधिक सीटें हैं, जिनमें 32 सीटें बीजेपी के पास हैं। सरकार चलाने के लिए बीजेपी को जेडीयू के समर्थन की आवश्यकता नहीं है। बावजूद इसके, जेडीयू का यह कदम बीजेपी के लिए एक धमकी जैसा माना जा रहा है।
बीजेपी की ओर से की गई सेंधमारी
यह मामला मणिपुर विधानसभा चुनाव के तीन साल पुराने घटनाक्रम से जुड़ा है, जब जेडीयू के 6 विधायक चुनाव में जीतकर आए थे। कुछ महीने बाद बीजेपी ने जेडीयू के पांच विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। दिलचस्प बात यह है कि उस समय बिहार में जेडीयू और बीजेपी गठबंधन में थे, फिर भी बीजेपी ने अपनी सहयोगी पार्टी को तोड़ दिया था।
जेडीयू का विरोध स्पष्ट: बीजेपी के खिलाफ
जेडीयू के मणिपुर प्रदेश अध्यक्ष, क्ष. विरेन सिंह ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा कि 2022 में जेडीयू के पांच विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के मामले में विधानसभा अध्यक्ष के पास याचिका लंबित है। अगस्त 2022 में जेडीयू विपक्षी इंडिया गठबंधन का हिस्सा बन गया था, जिसके बाद मणिपुर में जेडीयू के एकमात्र विधायक ने बीजेपी सरकार के खिलाफ रुख अपनाया था। मणिपुर विधानसभा में जेडीयू विधायक मो. अब्दुल नासिर को विपक्षी विधायकों के साथ बैठने का आदेश दिया गया था।
जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष ने राज्यपाल से यह भी अनुरोध किया कि पार्टी का रुख अभी भी वही है और वह बीजेपी की सरकार के खिलाफ है, इसलिए विधानसभा में उसके विधायक को विपक्षी विधायकों के साथ बैठने की जगह दी जाए।
नीतीश का असली उद्देश्य क्या है?
जेडीयू का मणिपुर में बीजेपी से समर्थन वापस लेना, बीजेपी की सरकार के लिए तत्काल कोई खतरा नहीं उत्पन्न करता। फिर भी, इस फैसले को कई मायनों में देखा जा रहा है। आखिर जेडीयू को यह कदम क्यों उठाना पड़ा कि वे मणिपुर में कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ हैं? सूत्रों के अनुसार, इसे एक प्रेशर पॉलिटिक्स के रूप में देखा जा रहा है। बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव हैं, और इस निर्णय को बीजेपी पर सीट बंटवारे के लिए दबाव बनाने की रणनीति के रूप में भी देखा जा सकता है।
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