पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों ‘प्रगति यात्रा’ पर निकले हुए हैं। इस यात्रा का बजट करोड़ों में है क्योंकि मुख्यमंत्री कई स्थानों पर उद्घाटन और शिलान्यास कर रहे हैं। 18 जनवरी 2025 को नीतीश कुमार बेगूसराय जिले के मंझौल अनुमंडल जाएंगे और यहां एक अस्पताल का उद्घाटन करेंगे। लेकिन इसी अस्पताल से जुड़ी एक सच्चाई आज हम आपके सामने रखेंगे, ताकि यह समझा जा सके कि बिहार में लालफीताशाही का स्तर कितना ऊंचा है और सरकार कितनी सजग है।
तीन कार्यकालों में अस्पताल का निर्माण पूरा नहीं हुआ
बिहार में राजनेताओं से यह अक्सर सुना जाता है कि राज्य में काफी ‘प्रगति’ हुई है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस यात्रा का आयोजन कर रहे हैं। लेकिन इस यात्रा का क्या असर हुआ है और राज्य में कितनी प्रगति हुई है, इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं। मंझौल अनुमंडल में एक अस्पताल का निर्माण 2007 में स्वीकृत हुआ था और इसके शिलान्यास के लिए 2009 में कार्यवाही शुरू की गई। इसके बावजूद इस अस्पताल के निर्माण में 16 साल लग गए। यह समय एक राजनेता के तीन कार्यकालों से भी ज्यादा है।
पूरे मामले की विस्तृत समझ
अब हम आपको इस पूरे मामले का विस्तार से विवरण देते हैं। मंझौल अनुमंडल, जो बेगूसराय जिले में स्थित है, की आबादी लाखों में है। यहां 2007 में अनुमंडलीय अस्पताल के निर्माण की स्वीकृति दी गई थी। उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे और स्वास्थ्य मंत्री चंद्रमोहन राय थे। यह सच है कि मंझौल चंद्रमोहन राय का ननिहाल था और जब वे यहां आए, तो स्थानीय लोगों ने अस्पताल की मांग की। उन्होंने उसी सभा में इस अस्पताल के निर्माण का वादा किया।
ननिहाल के लोगों को दिया गया गिफ्ट
2007 में चंद्रमोहन राय ने इस अस्पताल के लिए 4 करोड़ 91 लाख रुपये की मंजूरी दी और 2009 में शिलान्यास हुआ। इसके बाद 2012 तक अस्पताल का निर्माण काफी तेज़ी से हुआ, लेकिन फिर अचानक काम रुक गया और कहा गया कि बजट कम है। इसके बाद पुनः योजना को रिवाइज किया गया।
अय्याशी का अड्डा और कचरा भवन बन गया अस्पताल
2013 में अस्पताल के निर्माण के लिए 5 करोड़ 51 लाख रुपये की स्वीकृति मिली और फिर काम शुरू हुआ। लेकिन 2014 में फिर से काम रुक गया। 2017 में योजना को पूरा करने के लिए प्रस्ताव 7 करोड़ 63 लाख रुपये का था। इसके बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई, और अस्पताल का भवन एक कचरा घर और अय्याशी का अड्डा बनकर रह गया।
विधायकों ने उठाया सवाल, लेकिन काम में कोई तेजी नहीं आई
2021 में विधानसभा और विधान परिषद में विधायक और एमएलसी ने अस्पताल के उद्घाटन पर सवाल उठाए थे। राजद विधायक राजवंशी महतो और भाजपा के एमएलसी रजनीश कुमार ने मंझौल अस्पताल के बारे में सवाल उठाए थे। तब स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि शेष कार्यों को 6 महीनों में पूरा किया जाएगा। लेकिन 6 महीने के बजाय तीन साल में काम पूरा हुआ और अंततः 16 साल बाद अस्पताल बनकर तैयार हुआ।
67 हजार वोटों से जीतने के बावजूद ध्यान नहीं दिया गया
इस दौरान सूबे में एनडीए और महागठबंधन दोनों ही सरकारें रही और वर्तमान में नेता विपक्ष भी स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी थे। मंझौल के विधायक, जो राजद से हैं और जिन्होंने 67 हजार वोटों से जीत हासिल की, ने भी इस मुद्दे पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। सिर्फ एक बार विधानसभा में सवाल उठाया गया, और बाकी समय कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
बिहार में प्रगति का क्या हुआ?
इस पूरे मामले से यह साफ हो जाता है कि जिस राज्य में एक अस्पताल के निर्माण में 16 साल लग जाए, वहां लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं कैसे मिल सकती हैं? बिहार के स्वास्थ्य विभाग में इतनी धीमी गति से काम होने के बावजूद, सरकार की ‘प्रगति यात्रा’ सवालों के घेरे में है। 16 साल बाद ही अस्पताल बनने से यह सवाल उठता है कि क्या राज्य में सचमुच प्रगति हुई है और क्या इस यात्रा का उद्देश्य वास्तव में लोगों के लिए सुधार लाना है, या फिर यह सिर्फ एक राजनीतिक शोर है?
इस तरह से बिहार में प्रगति की स्थिति का सही चित्रण किया जा सकता है, जहां एक अस्पताल के निर्माण में इतना लंबा समय लगता है।