पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वो बयान आपने जरूर सुना होगा कि बिहार पुलिस ना तो किसी को फंसाती है और ना हीं किसी को बचाती है। लेकिन इस मामले में तो ऐसा ही है। बिहार सरकार अपने ही एक प्रोमोटी आईपीएस अधिकारी की करतूतों के खिलाफ कार्रवाई करने से बच रही है।
IPS पर झूठे केस में फंसाने का आरोप साबित
बिहार के प्रोमोटी आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन पर एक महिला और उसके पति को झूठे केस में फंसाकर अगस्त 2018 में जेल भेजने और उन्हें प्रताड़ित करने का मामला है। इसका खुलासा सीआईडी जांच की रिपोर्ट में हो चुकी है। पांच महीने बेऊर जेल में रहने के बाद महिला और उसके पति ने मुख्यमंत्री और डीजीपी समेत तमाम जगहों पर न्याय की गुहार लगाई, लेकिन अभी भी पीड़ित परिवार को न्याय का इंतजार है।
पुलिस मुख्यालय में तैनात हैं आरोपी आईपीएस अधिकारी
पीड़िता का कहना है कि बांका के एसपी रहे चुके और वर्तमान में पुलिस महानिरीक्षक, आधुनिकीकरण, पुलिस मुख्यालय पटना में तैनात प्रोमोटी आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन ने अपने पद का दुरूपयोग कर उसके परिवार को तबाह कर दिया और वो पिछले पांच साल से न्याय की गुहार लगा रही है, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।
पीड़ित लगा रहे हैं न्याय की गुहार
दोषी पुलिस अधिकारी राजीव रंजन और अन्य पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई के लिए पीड़ितों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर, मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी राजविंदर सिंह भट्टी, एडीजी पुलिस मुख्यालय जीतेंद्र सिंह गंगवार समेत तमाम बड़े अधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई है।
मुख्यमंत्री के आदेश पर हुई सीआईडी जांच
पीड़िता का कहना है कि राजीव रंजन ने उनके परिवार और उनके पति के करियर को बर्बाद कर दिया। उसका परिवार न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है। पीड़िता के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश के बाद पूरे मामले की सीआईडी जांच कराई गई और वो रिपोर्ट फिलहाल डीजीपी कार्यालय और गृह विभाग और मुख्यमंत्री सचिवालय में लंबित है, इतना ही नहीं, महिला के पति ने लोक शिकायत विभाग में भी आवेदन दिया, जहां कई तारीखों में सुनवाई हुई, और दोषी पुलिस अधिकारी पर कार्रवाई के लिए अनुशंसा की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अगमकुंआ थाने पर गंभीर आरोप
सीआईडी जांच में आईपीएस राजीव रंजन के अलावा अगमकुंआ के तत्कालीन थानाध्यक्ष अशोक कुमार पांडेय, केस के IO विजय कुमार सिंह समेत कई लोग दोषी ठहराए गए हैं।
चार सौ से ज्यादा पन्नों की सीआईडी जांच रिपोर्ट
चार सौ से ज्यादा पन्नों की सीआईडी जांच रिपोर्ट में पुलिस अधिकारी राजीव रंजन की करतूतों का काला चिट्ठा बंद है। पीड़िता का कहना है कि आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन ने अपने पद का दुरूपयोग कर उन्हें और उनके पति को फंसाया और प्रताड़ित किया। उन्हें और उनके पति को झूठे केस में फंसाकर पांच महीने के लिए बेउर जेल भिजवा दिया। बाद में हाईकोर्ट से बेल मिलने के बाद दोनों बाहर निकले। उन्होंने कहा कि इस दौरान उन्हें और उनके पति को काफी सामाजिक और पारिवारिक और आर्थिक पीड़ा झेलने को मजूबर होना पड़ा।
लोक शिकायत विभाग ने भी कार्रवाई के दिए हैं आदेश
पीड़ितों ने बताया कि लोक शिकायत विभाग में भी मामले को उठाया गया। जहां से दोषी प्रोमोटी IPS राजीव रंजन समेत अन्य लोगों पर कार्रवाई के लिए आदेश पारित किया गया है, लेकिन सरकार के कुछ मंत्री और कुछ भ्रष्ट अधिकारी दोषियों को बचाने में लगे हैं।
पीड़िता ने बताया कि बिहार के 2006 बैच के प्रोमोटी आईपीएस राजीव रंजन सोशल मीडिया के जरिए उसके संपर्क में आए और फिर बाद में उनके कई रिश्तेदार भी सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़ गए और आपसी पारिवारिक संबंध बन गए। 2017 में हैदराबाद में अपने एक परिचित और कारोबारी मित्र के यहां आए थे और वहीं उनकी उनसे मुलाकात हुई थी। उनके अनुसार हैदराबाद में पुलिस ट्रेनिंग के दौरान राजीव रंजन उनके घर पर मिलने आए।
आईपीएस राजीव रंजन पर हैदराबाद के वनस्थलीपुरम थाने में दर्ज है FIR
पीड़िता ने कहा कि सोशल मीडिया पर संपर्क के बाद मई 2018 में राजीव रंजन जब हैदराबाद के पुलिस अकादमी में ट्रेनिग के लिए आया था तो वह बगैर किसी सूचना के उनके घर पहुंच गया और उनके साथ छेड़खानी शुरू कर दी। उस वक्त उनके पति ऑफिस गए हुए थे। उन्होंने आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन की हरकतों का विरोध किया, जिसके बाद राजीव रंजन ने उन्हें मुंह बंद रखने और झूठे केस में फंसाकर जेल भिजवाने की धमकी दी। पीड़िता के अनुसार वहां से जाने के बाद भी राजीव रंजन ने फोन कर उन्हें धमकाना जारी रखा, जिससे तंग आकर उन्होंने हैदराबाद के वनस्थलीपुरम थाने में पुलिस अधिकारी राजीव रंजन और उसके रिश्तेदार के खिलाफ 17 जुलाई 2018 को केस दर्ज कराने के लिए आवेदन दिया, लेकिन थाने के एसआई ने केस दर्ज करने में देर कर दी और इसकी सूचना पटना में प्रोमोटी आईपीएस राजीव रंजन को दे दी। बाद में 26 जुलाई 2018 को हैदराबाद में पुलिस के बड़े अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद वनस्थलीपुरम पुलिस ने केस दर्ज किया। जिसका FIR NO-658/2018 है। जिसमें आईपीसी की धारा 448, 354, 354A,504, 506 लगाई गई है।
पीड़ितों को झूठे केस में फंसाने का आरोप
पीड़िता ने बताया कि हैदराबाद में पुलिस शिकायत से बौखलाए आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन ने अपने भाई के ससुर डॉ महेश्वार प्रसाद (जो पटना के एनएमसीएच में डॉक्टर है) से पटना के अगमकुंआ थाने में उनके खिलाफ 25 लाख रुपए रंगदारी मांगने का झूठा केस दर्ज कराया। पीड़िता ने बताया कि जब उनके पति पटना में दर्ज झूठे केस में एंटीसिपेटरी बेल लेने के लिए पटना गए, तो राजीव रंजन ने अपने पद और शक्ति के प्रभाव का दुरूपयोग करते हुए 9 अगस्त 2018 को पटना एयरपोर्ट से अपने भाई संजीत कुमार और गुंडों की मदद से मेरे पति का अपहरण कर लिया और पटना के मेहंदीगंज थाने में रखा और हैदराबाद में दर्ज केस को उठाने के लिए दबाव बनाने लगा, जब उन्होंने केस उठाने से इंकार कर दिया, तो पटना के अगमकुंआ थाने में दर्ज झूठे केस में उनके पति को भी सह आरोपी बनाकर पटना के बेऊर जेल भेज दिया।
झूठे केस में बिना वारंट हैदराबाद से पीड़िता को पटना लाने का आरोप
पीड़िता ने बताया कि इस केस में सारे नियम और कायदे-कानून को ताक पर रखकर हैदराबाद से उसको और उसके बेटे को बिना वारंट के हवाई जहाज से हैदराबाद से दिल्ली और दिल्ली से पटना लाया, और बेऊर जेल भेज दिया।
पीड़िता के बेटे को भी अगवा करने का आरोप
पीड़िता के अनुसार आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन के हैदराबाद में कारोबारी मित्र ने 9 अगस्त 2018 को तीसरी क्लास में पढ़ने वाले उनके बेटे को घर से कुछ ही दूर पहले रिश्तेदार बनकर स्कूल वैन से उतार लिया और फोन कर धमकी देने लगा कि तुम्हारा बेटा मेरे पास है और केस वापस लो।
जेल में जबरदस्ती सादे कागज पर साइन कराने का आरोप
पीड़िता ने कहा कि आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन ने बेऊर जेल के तत्कालीन जेलर अशोक कुमार सिंह के साथ मिलकर जेल में उन्हें और उनके पति को प्रताड़ित किया। हैदराबाद के केस को खत्म करने के लिए जबरदस्ती मारपीट कर सादे कागजों पर हस्ताक्षर कराए और उसी के आधार पर हैदराबाद में दर्ज केस को बंद करा दिया। जिसका जिक्र सीआईडी की रिपोर्ट में किया गया है। पीड़िता का कहना है कि आईपीएस अधिकारी राजीव रंजन ने उसके पति के ऑफिस में अपने पद का प्रभाव दिखाकर उनके पति को नौकरी से निकलवा दिया और उसे बांग्लादेशी और सेक्स रैकेट चलाने वाला कहकर बदनाम किया।
पांच महीने जेल में रहने के बाद जनवरी 2019 में पटना हाईकोर्ट से जमानत मिली। जेल से बाहर निकलने के बाद पीड़िता ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सारी घटनाओं की जानकारी देते हुए न्याय की गुहार लगाई और पूरे मामले की तुरंत जांच सीआईडी को सौंप दी गई, जिसका पंजीयन संख्या-2018060123 है। पीड़िता के अनुसार सीआईडी की जांच पूरी हो गई है और फाइनल रिपोर्ट डीजीपी ऑफिस को भेज दिया गया है। इस पूरे मामले में पीड़िता ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ ही महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट से भी न्याय की गुहार लगाई है। अब देखना ये है कि सुशासन की सरकार में दोषियों पर कब कार्रवाई होगी, पीड़ितों ने सभी दोषियों को तत्काल निलंबित करते हुए बर्खास्त करने की मांग की है।
दोषियों को बचाने में जुटे कुछ मंत्री और अधिकारी- पीड़िता
इस पूरे मामले में सीआईडी जांच की फाइनल रिपोर्ट आने के बाद, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि 25 लाख रुपए रंगदारी मांगने का कोई मामला ही नहीं है। तो मुख्यमंत्री बिहार, गृह विभाग और डीजीपी ऐसे भ्रष्ट अधिकारी राजीव रंजन, अगम कुंआ थाने के तत्कालीन एसएचओ अशोक कुमार पांडेय और केस के आईओ विजय कुमार सिंह पर कार्रवाई करने से बच क्यों रहे हैं। पीड़ित को न्याय कब मिलेगा। सीआईडी जांच में दोषी सभी लोगों पर कब कार्रवाई होगी ।
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