सुपौल: बिहार सरकार की दूरदर्शिता और सतत विकास के विज़न से राज्य नई कहानियां लिख रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रहे स्वच्छ भारत मिशन और जीविका योजना की साझेदारी से सुपौल जिले में लगे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाई (PMWU) ने न केवल कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिश्चित किया है, बल्कि महिला सशक्तिकरण और आजीविका के नए रास्ते भी खोले हैं। सुपौल, बसंतपुर, छातापुर, किशनपुर और पिपरा प्रखंडों में संचालित ये इकाइयां अब “कचरे से कमाई” और “पर्यावरण से रोजगार” का नया प्रतीक बन कर उभर रही हैं। इन इकाइयों का संचालन जीविका समूह की दीदियों के हाथों में है। जो अब मशीनों से प्लास्टिक प्रोसेस कर उसे मार्केट तक पहुंचा रही हैं।

प्लास्टिक संग्रहण से हो रही पर्यावरण की रक्षा
सुपौल के PMWU ने अब तक 56,135 किलो प्लास्टिक कचरे का संग्रहण किया है। जिसमें से 42,066 किलो कचरे का सफलतापूर्वक प्रोसेसिंग कर 41,011 किलो कचरा विभिन्न रिसाइक्लिंग एजेंसियों को बेचा गया। जिससे अब तक 2,10,622 रुपये के राजस्व की प्राप्ति भी हो चुकी है।
पिपरा में स्थित ‘कला पार्क’, जहां प्लास्टिक कचरे से बनी कलाकृतियां स्थानीय आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं, यह बताता है कि बिहार में अब कचरे से कला और आय दोनों का प्रबंधन हो रहा है। एक जीविका दीदी भावुक होकर बताती हैं, “PMWU ने हमारे गांव को साफ किया, हमें रोजगार और आत्म-सम्मान भी दिया। अब हम कचरे से कमाई कर रहे हैं।”

सरकार की योजना, स्टार्टअप का साथ, स्वच्छता का विस्तार
जिला प्रशासन और राज्य सरकार ने मार्केट लिंकेज की चुनौती को भी अवसर में बदला है। स्थानीय स्टार्टअप प्लांट्स को प्रोत्साहन देकर यह सुनिश्चित किया गया है कि रिसाइक्लिंग एजेंसियों तक सीधी पहुंच सनिश्चित हो सके। इससे ना सिर्फ जीरो प्लास्टिक उत्सर्जन की दिशा में कदम बढ़ा है, बल्कि गांवों में सतत विकास की अवधारणा भी मजबूत हुई है।

प्रेरणा बना सुपौल, देश के लिए रोल मॉडल
सुपौल का PMWU मॉडल अब बिहार की सीमाओं से निकलकर देशभर में उदाहरण बन रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से प्रोत्साहित यह प्रयास दिखाता है कि सकारात्मक राजनीतिक इच्छाशक्ति, महिलाओं की भागीदारी और पर्यावरणीय सोच मिलकर विकास और स्वच्छता की नई परिभाषा गढ़ सकते हैं। बिहार सरकार की इस पहल ने न केवल कचरे की समस्या का समाधान किया, बल्कि उसे रोजगार, सम्मान और स्वच्छता का अवसर बना दिया। यह स्पष्ट संकेत है कि जब योजना धरातल पर उतार दी जाती है, तो उसका असर सिर्फ आकड़ों में नहीं, जीवन में दिखता है।