पटना डेस्क: ओडिशा गंभीर स्वास्थ्य संकट से गुजर रहा है, जहां सिकल सेल एनीमिया के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों को रक्त की जरूरत पड़ रही है, लेकिन अस्पतालों और ब्लड बैंकों में खून की भारी कमी हो गई है। यदि यह स्थिति बनी रही, तो मरीजों को गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।

क्या है सिकल सेल एनीमिया?

सिकल सेल एनीमिया एक आनुवंशिक रोग है जिसमें रेड ब्लड सेल्स (RBC) का आकार असामान्य हो जाता है। ये सिकल (हंसिए) के आकार की कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं, जिससे ब्लड फ्लो प्रभावित होता है। इसका सीधा असर शरीर पर पड़ता है, जिससे दर्द, ऑक्सीजन की कमी और टिश्यू डैमेज हो सकता है।

डॉक्टरों के अनुसार, यह बीमारी माता-पिता से बच्चों में अनुवांशिक रूप से स्थानांतरित होती है। इसके कारण थकान, सांस की तकलीफ, पीलापन और लगातार बदन दर्द जैसी समस्याएं होती हैं। हालांकि, इसका स्थायी इलाज उपलब्ध नहीं है, लेकिन सही दवाओं और उपचार से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

सिकल सेल एनीमिया के लक्षण और जोखिम

मुख्य लक्षण

अत्यधिक थकान और कमजो

रीपीलिया (त्वचा और आंखों का पीला पड़ना)

हाथ-पैरों में सूजन

छाती, पीठ, हाथ या पैरों में तेज दर्द

एनीमिया

बार-बार संक्रमण का शिकार होना

विकास में देरी

दृष्टि-संबंधी समस्या

एंलकवा और हृदय रोग

कौन हो सकता है इस बीमारी का शिकार?

अगर माता-पिता दोनों में सिकल सेल जीन मौजूद है, तो उनके बच्चों में इस बीमारी के विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, अफ्रीकी और भारतीय आदिवासी समुदायों में यह बीमारी ज्यादा देखी जाती है।

सिकल सेल एनीमिया की जटिलताएं

सिकल सेल शरीर की रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध कर सकता है, जिससे गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं:

स्ट्रोक और लकवा

अंगों को नुकसान

अंधापन और पित्त पथरी

हृदय और फेफड़ों की बीमारियां

आदिवासी समुदाय में अधिक प्रभाव

भारत में इस बीमारी की पहचान 1950 के दशक में हुई थी। शोध में पता चला कि यह रोग आदिवासी समुदायों में अधिक पाया जाता है, खासकर उन इलाकों में जहां सजातीय विवाह (सगोत्रीय विवाह) की परंपरा है। देश की 8.6% आबादी आदिवासी समुदाय से आती है, जिसमें लगभग 10% लोग सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित हो सकते हैं।

भारत के किन राज्यों में बढ़ रहे हैं मरीज?

ओडिशा समेत राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में इस बीमारी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है।

ओडिशा में स्थिति

अब तक 38,37,061 लोगों की जांच की गई।88,018 लोग पॉजिटिव पाए गए।

3,42,271 लोगों में सिकल सेल वाहक की पुष्टि हुई।

3,393,632 लोगों की रिपोर्ट निगेटिव आई।

राज्य सरकार ने मरीजों के लिए हाइड्रोक्सीयूरिया दवा शुरू की है, जिससे 35,962 मरीजों का इलाज किया जा रहा है।

सिकल सेल एनीमिया से बचाव के उपाय

1. जागरूकता और बचाव

यह बीमारी सबसे ज्यादा बच्चों और गर्भवती महिलाओं को प्रभावित कर रही है। इस बीमारी से पीड़ित महिलाएं डिलीवरी के बाद जीवित नहीं रह पातीं। इससे बचाव के लिए जागरूकता सबसे महत्वपूर्ण उपाय है।

2. सबसे ज्यादा प्रभावित जिले

1952 में ओडिशा के झारसुगुड़ा, अंगुल, बालासोर और क्योंझर जिलों में इस बीमारी की पहचान हुई थी। ये जिले अब भी सबसे अधिक प्रभावित हैं।

3. गर्मियों में बढ़ता खतरा

ब्लड सेफ्टी निदेशक प्रदीप कुमार पात्रा के अनुसार, गर्मी के मौसम में इस बीमारी के लक्षण तेज हो जाते हैं। शरीर में खून की कमी होने पर इसके प्रभाव बढ़ जाते हैं, जिससे मरीजों को अधिक रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।

4. जेनेटिक कार्ड की शुरुआत

राज्य सरकार ने सिकल सेल एनीमिया मरीजों और उनके परिवारों को जेनेटिक कार्ड देना शुरू किया है। यह कार्ड यह सुनिश्चित करेगा कि सिकल सेल मरीज समान जीन वाले व्यक्ति से विवाह न करें।

कैसे की जाती है बीमारी की जांच?

ओडिशा में जांच प्रमुख सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में की जाती है।गजेल मशीन से प्रारंभिक जांच।MTP टेस्ट कटक, संबलपुर और बरहामपुर मेडिकल कॉलेज में किया जाता है।

2035 तक बीमारी खत्म करने का लक्ष्य

ओडिशा सरकार ने 2035 तक सिकल सेल एनीमिया को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है।

डिस्क्लेमर

इस लेख में दी गई जानकारी कुछ अध्ययनों और चिकित्सा विशेषज्ञों की सिफारिशों पर आधारित है। किसी भी स्वास्थ्य उपाय को अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

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