पटना: बिहार में नीतीश कुमार की सरकार का दावा है कि यह राज्य “सुशासन” की मिसाल है, लेकिन इस दौरान अफसरशाही का प्रभाव चरम पर दिखाई दे रहा है। खासतौर पर, रिटायर हो चुके अफसरों को उच्च पदों पर नियोजित करने की एक नई प्रथा देखने को मिल रही है, जो कई सवाल खड़े कर रही है। एक ताजा मामले में, रिटायर आईएएस अधिकारी गजेन्द्र कुमार मिश्रा को फिर से उसी विभाग में नियोजित किया गया है, जहां वह अपनी सेवा निवृत्ति से पहले कार्यरत थे। इसके पीछे की प्रक्रिया और नियमों की अनदेखी को लेकर विपक्ष ने गंभीर सवाल उठाए हैं।
आईएएस अधिकारी के रिटायरमेंट के बाद संविदा नियुक्ति
गजेन्द्र कुमार मिश्रा, जो कि 2010 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, 31 अक्टूबर 2023 को रिटायर हुए थे। इसके बाद, 1 नवंबर 2023 को उन्हें विज्ञान प्रावैधिकी एवं तकनीकी शिक्षा विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर संविदा नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति इसलिए खास है क्योंकि इस प्रक्रिया में कई नियमों की अनदेखी की गई और कुछ प्रावधानों को बदल दिया गया।
आरटीआई से खुलासा, नियमों की अनदेखी
आरटीआई कार्यकर्ता सलिल कुमार सिंह द्वारा 17 जनवरी 2023 को सूचना मांगी गई थी, जिससे इस नियुक्ति से संबंधित पूरी प्रक्रिया का खुलासा हुआ। विभाग ने 12 जनवरी 2024 को संबंधित जानकारी मुहैया कराई। इसके अनुसार, गजेन्द्र कुमार मिश्रा को रिटायरमेंट के बाद संविदा पर नियुक्ति दी गई, लेकिन यह प्रक्रिया सामान्य नियमों के खिलाफ थी।
गजेन्द्र कुमार मिश्रा की संविदा नियुक्ति का विवाद
विज्ञान प्रावैधिकी एवं तकनीकी शिक्षा विभाग ने इस नियुक्ति को आवश्यक बताते हुए, यह कहा कि यह कदम भविष्य में निम्न वर्गीय लिपिक और कार्यालय परिचारी की नियुक्तियों से जुड़े कार्यों के लिए उठाया गया। इसके लिए, गजेन्द्र कुमार मिश्रा का संविदा पर कार्यरत रहना विभाग के हित में था। विभाग ने इसे स्वीकृति दिलाने के लिए संबंधित कैबिनेट में प्रस्ताव भेजा और इसे मंजूरी दिलाई।
सामान्य प्रशासन विभाग का आपत्ति
हालांकि, सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) ने इस नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी। उनके मुताबिक, सेवानिवृत्त अफसरों का संविदा नियोजन केवल तब संभव है जब वे बिहार सरकार के कर्मचारियों के रूप में कार्यरत हों। इस पर विशेष ध्यान दिया गया कि गजेन्द्र कुमार मिश्रा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं और उनकी नियुक्ति इस श्रेणी में नहीं आती। बावजूद इसके, विभाग ने इस मामले में छूट प्राप्त करते हुए संविदा नियुक्ति का प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा।
नीतीश कैबिनेट की स्वीकृति और परिवर्तन
10 अक्टूबर 2023 को हुई कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई, लेकिन कैबिनेट ने इसे नियमित पदस्थापन के बजाय नियमित प्रोन्नति होने तक के लिए स्वीकृत किया था। लेकिन, विभाग ने बाद में इस प्रस्ताव को बदलते हुए इसे नियमित पदस्थापन की बजाय नियमित प्रोन्नति होने तक लिखा और इसी आधार पर गजेन्द्र कुमार मिश्रा ने 1 नवंबर 2023 को अपना कार्यभार संभाला।
लिपिकीय गलती और शुद्धि पत्र जारी करना
जैसे ही यह मामला सार्वजनिक हुआ, विभाग ने इसे छुपाने के लिए शुद्धि पत्र जारी किया। 11 नवंबर 2023 को यह शुद्धि पत्र जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि विभागीय अधिसूचना में लिपिकीय त्रुटि हुई थी, और इसे सही कर दिया गया। इसके बाद, गजेन्द्र कुमार मिश्रा के नियोजन को वैध ठहराया गया।
क्या विभाग में संयुक्त सचिवों की कमी है?
यह सवाल भी उठता है कि क्या विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर कोई अन्य अधिकारी नहीं थे? यदि थे तो क्या वे काम करने में सक्षम नहीं थे? इस दौरान, विभाग ने यह दावा किया कि गजेन्द्र कुमार मिश्रा की नियुक्ति आवश्यक थी, लेकिन कुछ समय पहले ही अन्य दो संयुक्त सचिव भी विभाग में कार्यरत थे। 6 जनवरी 2023 को जारी विभागीय पत्र के अनुसार, तीन संयुक्त सचिव थे: गजेन्द्र कुमार मिश्रा, अरुण कुमार सिंह और इबरार आलम। लेकिन गजेन्द्र कुमार मिश्रा के रिटायरमेंट के बाद, विभाग ने अरुण कुमार सिंह को स्थानांतरित कर दिया और उनकी जगह गजेन्द्र कुमार मिश्रा को संविदा पर नियुक्त किया।
विभागीय नियमों की अनदेखी और सरकारी तंत्र का सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में यह स्पष्ट होता है कि विभागीय नियमों और प्रक्रिया की अनदेखी की गई। सामान्य प्रशासन विभाग ने स्पष्ट रूप से कहा था कि रिटायरमेंट के बाद आईएएस अधिकारी का संविदा नियोजन संभव नहीं है, फिर भी इसे नजरअंदाज किया गया। इसके बाद कैबिनेट से स्वीकृति मिलने के बावजूद, विभाग ने प्रस्ताव को बदलने के साथ ही अपने फैसले की वैधता को पुनः स्थापित करने की कोशिश की।
बड़ा सवाल: क्या यह सब चहेते को सेट करने के लिए था?
यह पूरा मामला यह सवाल उठाता है कि क्या यह सब कुछ केवल एक चहेते अधिकारी को सेट करने के लिए किया गया था? जब पूरे राज्य में नियमों और प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है, तो क्या इस मामले में खास छूट दी गई और जो अन्य अधिकारी सक्षम थे, उन्हें बाहर किया गया? यह सवाल बिहार के सरकारी तंत्र पर गंभीर सवाल खड़ा करता है, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।
नियमों का पालन और अफसरशाही की ताकत
इस पूरे घटनाक्रम से यह भी जाहिर होता है कि बिहार में अफसरशाही का प्रभाव अभी भी प्रबल है। अधिकारियों के रिटायरमेंट के बाद भी उन्हें संविदा पर उच्च पदों पर नियुक्ति देने की प्रक्रिया से यह साफ हो जाता है कि राजनीतिक ताकतें और अफसरशाही के बीच गठजोड़ कितनी मजबूत है। यह परिपाटी कहीं न कहीं लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रशासन के कार्यक्षमता को कमजोर करने का काम करती है।
बिहार के प्रशासन में अफसरशाही का दबदबा साफ तौर पर देखा जा सकता है। रिटायर आईएएस अधिकारियों को संविदा नियुक्तियों के जरिए अहम पदों पर स्थापित करने की प्रक्रिया ने कई सवालों को जन्म दिया है। चाहे वह गजेन्द्र कुमार मिश्रा का मामला हो या अन्य अधिकारियों के नियुक्ति के तरीके, यह घटनाक्रम प्रशासन की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि बिहार सरकार इस तरह की प्रथाओं पर पुनः विचार करे और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी और उचित बनाए।
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