पटना: कर्पूरी ठाकुर ने बिहार की राजनीति में समाजवाद की नई दिशा दी और राज्य को नए उच्चतम मुकाम तक पहुँचाया। उनकी नीतियाँ आज भी जनहित के प्रतीक हैं और उनके नेतृत्व ने बिहार को एक नई पहचान दी। कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी और दृढ़ता उन्हें अन्य राजनेताओं से अलग बनाती थी।

डॉ. लोहिया और कर्पूरी ठाकुर का संबंध

कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितोझिया गांव में हुआ था। उनके विचारों में डॉ. राम मनोहर लोहिया का गहरा प्रभाव था। लोहिया ने कर्पूरी ठाकुर को हमेशा जननायक की उपाधि दी और उनके नेतृत्व में देश में बदलाव की संभावना जताई। कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में दो कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिनकी वजह से उन्हें जननायक की उपाधि प्राप्त हुई।

कर्पूरी ठाकुर की गरीबी और जनहित की नीतियाँ

कर्पूरी ठाकुर का जीवन बेहद साधारण था। जब वह विधायक बने, तो उनके माता-पिता उन्हें 25 पैसे देते थे। एक बार जब उनके पिता के पास पैसे नहीं थे, तो कर्पूरी ठाकुर घर से बाहर चले गए, ताकि उन्हें शर्मिंदा न होना पड़े। इस घटना ने उन्हें वृद्धावस्था पेंशन लागू करने की प्रेरणा दी, ताकि गरीब बुजुर्गों को वित्तीय सहायता मिल सके।

सादगी और ईमानदारी का प्रतीक

कर्पूरी ठाकुर सादगी के प्रतीक थे। एक बार पटना में जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर आयोजित एक कार्यक्रम में वह टूटी चप्पल और फटे कुर्ते में पहुंचे। इस पर चंद्रशेखर ने उनके कुर्ते को दान में देने की अपील की, और एक बड़ी धनराशि एकत्रित हुई। हालांकि, कर्पूरी ठाकुर ने वह राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा करने का प्रस्ताव दिया, जिससे उनकी ईमानदारी और सादगी का उदाहरण सामने आया।

इंदिरा गांधी के प्रस्ताव को ठुकराना

1974 में कर्पूरी ठाकुर के बेटे का चयन मेडिकल में हुआ और वह हार्ट सर्जरी के लिए बीमार थे। इंदिरा गांधी ने उन्हें सरकारी खर्च पर इलाज करवाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन कर्पूरी ठाकुर ने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि वह अपने बेटे का इलाज सरकारी खर्च पर नहीं करवाएंगे। इसके बाद जयप्रकाश नारायण ने पैसे की व्यवस्था की और बेटे का इलाज न्यूजीलैंड में कराया।

कर्पूरी ठाकुर का विधानसभा में संघर्ष

कर्पूरी ठाकुर ने हमेशा विधानसभा में अपनी बात मजबूती से रखी। एक बार उन्होंने एचईसी के मुद्दे पर रात भर विधानसभा में धरना दिया और सरकार को झुकने पर मजबूर किया। इसके अलावा, उन्होंने अंग्रेजी की बाध्यता को हटाने की पहल की, जिससे लोग बिना अंग्रेजी के भी मैट्रिक पास कर सकते थे।

भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा रुख और महिलाओं के लिए आरक्षण

कर्पूरी ठाकुर ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और भ्रष्ट अधिकारियों को “भटियारा” शब्द से संबोधित किया, जिससे विधानसभा में हंगामा मच गया। उन्होंने महिलाओं के लिए आरक्षण प्रदान करने का कार्य भी किया। इसके अलावा, उन्होंने पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण का लाभ दिलवाया और गैर सिंचित जमीन का लगान माफ करने का भी निर्णय लिया।

कर्पूरी ठाकुर का नेतृत्व आज भी बिहार और देशभर में एक प्रेरणा स्रोत है, जो समाज की भलाई और बदलाव के लिए समर्पित रहे।

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