रांची/झारखंड: झारखंड विधानसभा चुनाव में पहले चरण की वोटिंग संपन्न हो चुकी है, जबकि दूसरे चरण का मतदान 20 नवंबर को 38 सीटों पर होगा। पहले चरण में ग्रामीण इलाकों में मतदान प्रतिशत ज्यादा रहा, जबकि शहरी क्षेत्रों में मतदाताओं का उत्साह कम देखा गया। विशेष रूप से आदिवासी बहुल क्षेत्रों में रिकॉर्ड वोटिंग हुई, जिसमें 10 सीटों पर 70 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ।

पहले चरण के मतदान के आंकड़े और उनके मायने

झारखंड में पहले चरण के मतदान के आंकड़े विश्लेषकों के लिए कई सवाल खड़े कर रहे हैं। इस बार मतदान प्रतिशत 66 प्रतिशत से ज्यादा रहा, जो 2019 के मुकाबले करीब 2 प्रतिशत अधिक है। हालांकि, यह वृद्धि बहुत कम है, और इससे यह कहना मुश्किल है कि वोट किस पार्टी के पक्ष में गए हैं। सामान्य धारणा यह होती है कि अधिक मतदान का मतलब यह है कि लोग वर्तमान सरकार से खुश नहीं हैं और वे इसके खिलाफ वोट डाल रहे हैं, लेकिन यह धारणा हमेशा सही नहीं साबित होती।

रिजर्व सीटों पर अधिक मतदान

पहले चरण में 26 रिजर्व सीटों पर 77 प्रतिशत मतदान हुआ, जो अब तक का रिकॉर्ड है। खास बात यह है कि इनमें से 21 सीटों पर इंडिया गठबंधन का कब्जा है, जबकि 5 सीटें एनडीए के पास हैं। रिजर्व सीटों पर अधिक मतदान को विश्लेषक अलग-अलग दृष्टिकोण से देख रहे हैं। कुछ का मानना है कि हेमंत सोरेन के जेल जाने से आदिवासी समुदाय में एकजुटता बढ़ी है और बीजेपी के खिलाफ नाराजगी का संकेत यह बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत दे रहा है।

हेमंत सोरेन की योजनाओं का प्रभाव

कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि हेमंत सोरेन सरकार द्वारा शुरू की गई मंईयां सम्मान योजना का भी मतदाताओं पर असर पड़ा है। इस योजना के तहत 18 से 50 साल की महिलाओं के खाते में 1000 रुपये डाले जा रहे हैं, जिससे अब तक करीब 49 लाख महिलाएं जुड़ी हैं। इंडिया गठबंधन ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस राशि को बढ़ाकर 2500 रुपये करने का वादा किया है।

एनडीए की योजनाओं और मुद्दों का प्रभाव

वहीं, एनडीए के नेताओं ने भी महिलाओं के लिए ‘गोगो दीदी योजना’ का वादा किया है, जिसके तहत महिलाओं को 2100 रुपये प्रति माह दिए जाएंगे। इसके अलावा, बीजेपी ने रोटी, बेटी, माटी और बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है। अगर वोटर्स इन मुद्दों पर बीजेपी की ओर आकर्षित होते हैं, तो चुनाव परिणामों में चौंकाने वाली स्थिति हो सकती है।

कांटे की टक्कर में भविष्य का अनुमान कठिन

कुल मिलाकर, पहले चरण के मतदान से यह साफ नहीं हो पा रहा कि चुनावी मुकाबला किस ओर जाएगा। विश्लेषक मानते हैं कि स्थिति बेहद पेचीदी है, और हर पार्टी के पास अपनी स्थिति को मजबूत करने के कई उपाय हैं। हालांकि, फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि चुनाव में किसकी जीत होगी, क्योंकि चुनावी रुझान अक्सर बदलते रहते हैं।

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